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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टांगहृदप । प्र. ६ वस्तुके नष्ट होनेका समाचार सुनावै, अथवा | उसके चित्त को शांत करने का उपाय कोई अद्भुत पदार्थ उसको दिखावै । अथवा करे ।। उसके देहपर सरसों का तेल लगाकर हाथ कामादिज उन्माद में कर्तव्य । पांव वांचकर धूपमें चित्त डालदे । उसके कामशोकभयक्रोधहर्षेालोभसंभवान् ५५ देहमें कैंचकी फली रिगड दे । अथवा गरम परस्परप्रतिद्वंद्वैरेभिरेव शमं नयेत् । लोह, तेल वा जल उसके देहपर डाले । ___अर्थ-काम, शोक, मय, क्रोध, हर्ष, अथवा उसके देह पर कोडे लगावै, अथवा ईर्ष्या, लोभ इनसे उत्पन्न हुए उन्माद रोगों गढे में डालदे । अथवा किसी अंधेरे गढे में इनके प्रतिपक्षी उपायों को काममें लाकर में वा शस्त्र, पत्थर और मनुष्य रहित घरमें शांति का उपाय करे। बंद करदे । अथवा ऐसे सर्पसे जिसके दांत भूतोन्माद में कर्तव्य । उखाड लिये गये हों, अथवा दमन किये भूतानुबंधमीक्षेत प्रोक्तलिंगाधिकाकृतिम् । हुये सिंह वा हाथियों से उसे डरावै । अथवा यद्युन्मादे ततः कुर्याद्भूतनिर्दिष्टमौषधम् । राजा के सिपाही उसको बाहर लेजाकर अर्थ-छः प्रकार के उन्मादों के जो अच्छी तरह बांधकर खूब धमका कर इस लक्षणादि कहे गये हैं, उन लक्षणों से अधिक लक्षण पाये जाय तो उसे भूतोन्माबातसे डरावै कि राजाने तुझको मार डालने के लिये आज्ञा दी है, क्योंकि शारी. द कहते हैं । इस भूतोन्मादमें वह चिकित्सा करनी च हिये तो भूत चिकित्सित में कही रक क्लेश से प्राणोंको भय अधिक होताहै । इन उपायों से विप्लवको प्राप्त हुए रोगी का मन शांत होजाता है। उन्माद में बलिप्रदान । | बलिं च दद्यात्पललं यावकं सक्तपिडिकाम् उक्त क्रिया का विधान । | स्निग्धं मधुरमाहारं तंडुलानरुधिरोशितान्। सिद्धा क्रिया प्रयोज्येयं देशकालाद्यपेक्षया। पकामकानि मांसानि सरामैरेयमासवम । __ अर्थ-उक्त सिद्ध किया देश और काल अतिमुक्तस्य पुष्पाणि जात्याः सहचरस्यच का विचार करके काम में लानी चाहिये । चतुप्पथे गवां तीर्थे नदीनां संगमेषु च ५८ . इष्ट विनाशजन्यउन्माद । अर्थ-भूतानुबंधी उन्मादमें तिलका चू. इष्टद्रव्यविनाशात्त मनो यस्योपहन्यते॥५३॥ र्ण, कुलथी, सक्तुपिंडिका, स्निग्ध और मधुरास्य तत्सदृशप्राप्तिः सांत्वाश्वासैःशमनयत् र आहार, रुधिरप्लुत चांवलों का भात, क__ अर्थ-धनादिक किसी प्यारी बस्तु के चा पक्का मांस, सुरा, मेरेय और आसव,मानष्ट होजाने से जिसका मन चायमान हो । धवीलता, चमेली, वा सहचरी के फूल, इन गया है उसे धनादि की प्राप्ति का समा- | सब द्रव्यों को एक पात्रमें रखकर चौराहे में चार, तथा सांत्वना और आश्वासन द्वारा या गोशाला में वा नदी के संगम पर रखदे । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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