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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ ५ उत्तरस्थान भाषाटीकासभेत । नहीं है )। काली मिरच, बच और नीम के पत्ते इनको । तद्वच कृष्णपाटल्या विल्यमूलं फत्रिकम्। बकरे के मूत्र में पीसकर सुवन वा आंख में । हिग्विद्रयवसिद्धार्थलशुनामलकीफलम् ॥ आंजने से यक्षग्रह की शांति होती है । नावनांजनयोयोज्यो बस्तमृत्रहृतो गदः। ___अर्थ-कंजा, सिरस, और कृष्ण प.टली ब्रह्मराक्षसों की वलि । ब्रह्मरक्षोवलिः सिद्ध यवानां पूर्णमाढकम् ॥ इन तीनों की छाल, मह, फूल और फल, तोयस्य कुम्भः पलले छ वस्त्रं विलेपनम् ॥ बलागरी, त्रिकुटा, हींग, इन्द्रगौ, सफेद ___ अर्थ ब्रह्मराक्ष मो के निमित्त पके हुए | सरसों, हसन और आमला, इन सब द्रव्यों जौ का भरा हुआ एक पात्र, जलका कलश | को बकरे के मूत्रमें पीसकर नस्य आर अंजन द्वारा प्रयोग करनेसे हितकारी होता है। तिलका कल्क, छत्र, वस्त्र और विलेपन घृतका प्रयोग । इन द्रव्यों का बलि देना चाहिये ( यहां एभिरेष घृतं सिद्धं गवां मूत्रे चतुर्गुणे ४३॥ आढक शब्द पात्र वाचक है, मान वाचक रक्षरेग्रहान् वारयते पानाभ्यंजननायनैः । | अर्थ-इन ऊपर कही हुई औषधियों के घृतका प्रयोग । गायत्रीविंशतिपलक्याथेऽर्धपलिकः पचेत। साथ चौगुने गोमूत्र में सिद्ध किया हुआ प्रयुषणत्रिफलाहिगुपडग्रन्यामिशिसप्पैः । घी पान, अभ्यंजन और नस्य द्वारा प्रयोग साने पत्रल गुनैः कुडवान्सत सर्पिषः ३९॥ किये जानेपर रक्षाग्रह को शांत करदेताहै। गोमूत्रे त्रिगुगे पाने नस्याभ्यंगे तद्वितम्। पिशाच गूह की वस्ति । . अर्थ-खैर के बीस पल क्याथमें त्रिकुटा, पिशाचानां वलिःसीधुपिण्याकपलल दधि त्रिफला, हींगवच, सौफ, सरसों, नीमके मूलकं लवणं सर्पिःसभूतोदनयायकम्। पत्ते और लहसन प्रत्येक आधा पल, तथा अर्थ--पिशाच ग्रहोंकी शांति के निमित्त सातकडव घी, तथा तिगुना गोमूत्र इनको साधु, तिलकल्क, दही, मूली, नमक, सरसों पाक विधिके अनुसार पकावै । इस भूतोदन और यवके पदार्थ इनकी बलि घी का पान, नस्य और अभ्यंग द्वारा प्रयोग देनी चाहिये । करनेसे अत्यंत हितकारी है। घृत प्रयोग। हरिद्राद्वयमंजिष्ठामिशिसैंधव नागरम् ४५॥ रसोंकी वलि । रक्षसां पललं शुम्लं कुसुमं मिश्रकोदनम् ॥ हिंगुप्रियंगुत्रिकटुरसोनत्रिफला वचा। पाटलाश्वतकटभीशिरीषकुसुमैर्वृतम् ४६ बलिःपक्काममांसानिनिपावारुधिरोशिताः गोमूत्रपादिकं सिद्धं पानाभ्यजनयोहिर म्॥ ___अर्थ-रक्षाग्रह के निमित्त तिलका कल्क ___ अर्थ-दोनों हलदी, मीठ, सौंफ, संपा. सफेद फूल, खिचडी, पक अपक मांस, रुविर में भिगोये हुए मोंठ इनका बलि देना नमक, सौंठ. हींग, प्रियंगु, त्रिकुटा, लहसन, त्रिफला, बच, पाटला सफेद चिरमिठी,और चाहिये । नस्याभ्यंजन प्रयोम । सिरस का फूल, इनके कल्क के साथ चौनकमालशिरीषत्वङ्मृलपुष्पफलानि च ॥ गुने गोमूत्र में पाक विधि के अनुसार सिद्ध For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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