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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( ७५०) www.kobatirth.org अशंगहृदय । तट पर, नागग्रह के लिये पूर्वदक्षिण में, यक्षग्रह के लिये यक्षग्रहमें अथवा नदियों के संगम पर, राक्षसग्रह के लिये चौराहे पर तथा सघन वनमें, रक्षोग्रह के लिये दक्षिण दिशा में ब्रह्मराक्षस के किये पूर्वदिशा में, पिशाच के लिये पश्चिम दिशामें शून्य स्थानमें बलिप्रदान करे | देवताओं की बलि | शुचिशुक्लानि माल्यानि गन्धाः क्षैरेथमोदनम् २८ ॥ दावे छत्र च पवलं देवानां बलिरिष्यते,, । अर्थ - पवित्र सफेद पुष्प, गंध, दूधका पदार्थ, चांवल, दही और सफेद, छत्र, यं द्रव्य देवताओं की बालके निमित्त देवें । घृतपान से ग्रहमोचन । हिंगुसर्पपपग्रंथाव्योपैरर्धपलोन्मितैः २९ ॥ 'चतुर्गुणे गवां मूत्रे घृतप्रस्थं विपाचयेत् । सत्याननावनाभ्यंगैर्देवग्रहविमोक्षणम् ३० ॥ अर्थ- हींग, सरसों, श्वतवच और त्रिकुटा प्रत्येक आधा पल, चौगुने गोमूत्र में एक प्रस्थ घी पाकविवि से पकाकर रख ले। इस घी का पान, नस्य और अभ्यंग द्वारा प्रयोग करने से देवग्रह की शांति हो जाती है । ग्रहमोचनार्थ नस्यांजन | नस्यांजनं वचाहिंगुलशुनं वस्तवारिणा । अर्थ - बच, हींग और लहसन इनको बकरे के मूत्र में पीसकर नस्य और अंजन " द्वारा प्रयोग करने से देवग्रह की शांति हो जाती है । दैत्यग्रह की शांति | दैत्ये बलिहु फल सोशीर कमलोत्पलः ३१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ०.५ अर्थ - दैत्यग्रह की शांति के निमित्त अनेक प्रकार के फल, खस, कमल और नीलोत्पल की बलि देवै । नागग्रहों की बलि | नागानां सुमनोलाज गुडापूपगुडोनैः । परमान्नमधुक्षीरकृष्णमृन्नागकेसरैः ॥ ३२ ॥ वचापद्म पुरोशीररकोत्पलदलैर्वलिः । श्वेतपत्रं चरोधं च तगरं नागसर्षपाः ३३ ॥ शीतेन वारिणा पिष्टं नानांजनयोर्हितम् । अर्थ - नागग्रहों की शांति के निमित्त चमेली के फूल, धान की खील, गुड क पूआ, मीठा भात, खीर, शहत, दूध. काली मिट्टी, नागकेसर, बच, कमल, गूगल, खस, लाल कमल इन द्रव्यों का बलि देव । श्वेत कमल, लोध, तगर, नागेश्वर और सरसों, इन सब द्रव्यों को ठंडे जल में पीसकर नस्य और अंजन का प्रयोग करे । क्षों की वलि | यक्षाणां क्षीरदध्याज्य मिश्रकोदन गुग्गुलुः ॥ देवदारूत्पलं पद्ममुखी वस्त्रकांचनम् । हिरण्यं च बलियोज्यो For Private And Personal Use Only मूत्राज्यक्षीरमेकतः ॥ ३५ ॥ सिद्धं समोन्मितं पाननावनाभ्यंजने हितम् । अर्थ-यक्षों के लिये दूध, दही, घी, मिश्रित अन्न, गूगल, देवदार, नीलोत्पल, पद्म, खस, सुनहरी वस्त्र और सुवर्ण का बलि देवे | समान भाग गोमूत्र, घी और दूध इनको पकाकर पान, नस्य और अभ्यं जन द्वारा प्रयोग करना हित है । अन्य प्रयोग | • हरीतकी हरिद्वे द्वे लशुनो मरिचं वचा ३६ निवपत्रं च पस्तांबुकल्कितं नावनांजनम् । अर्थ- हरड, हळदी, दारूहल्दी, ल्हसन
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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