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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्र. ५ उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत । (७१९) महाभूतराव घृत । ग्रहानुसार दानादि । मतमधुकरंजलाक्षापटोलीसमंगावचा. स्नानवस्त्रवसामांसमद्यक्षीरगुडादि च। पाटलोहिंगुसिद्धार्थसिंहीनिशा- रोचते यद्यदायेभ्यस्तत्तेषामाहरेत्तदा २२॥ गुम्लतारोहिणी। ____अर्थ-स्नान, वस्त्र, वसा, मांस मद्य, बदरकटुफलत्रिकाकाण्ड मरांकोल्लकोशातकीशिग्रनिवांवुद्राहूयैः।। क्षीर और गुडादिक जो जो वस्तु जिस जिस गदशुष्कतरुपुष्पवीजोनयष्टय- ग्रहको प्रियहों वही उस ग्रहके निमित्त उसी द्रिकर्णीनिकुम्भा- दिन देनी चाहिये । मिबिल्यैः समैः कल्कितैवर्गेण सिद्ध । अन्यद्रव्यों का दान । ' घृतम् । विधिविनिहितमाशु सर्वे क्रमै पोजेत हति | रत्नानि गंधमाल्यानि वीजानि मधुसर्पिषी। सर्वग्रहोन्मादकुष्टज्वरांस्तन्महा भूतरावं. भक्ष्याश्च सर्वे सर्वेषां सामान्योस्मृतम् ॥ २० ॥ विधिरित्ययम् ॥ २३ ॥ अर्थ-तगर, महुआ, कंजा, लाख, प- अर्थ-रत्न, गंध, माल्य, यादि वीज, ल, मजीठ, वच, पाटला, हींग, सफेद मधु, घृत तथा सब प्रकार के भक्ष्य पदार्थ सरसों, कटेरी, हलदी, दारुहलदी प्रियंगु ग्रहों के निमित्त प्रदान करे । यह सब ग्रहों कुटकी, बेर, त्रिकुटा, त्रिफला, थहर, की सामान्य विधि है । देवदारू, बायबिडंग, अजगंध, गिलोय, विशेष विधि । अंकोल, कोशातकी, सहजना, नीम, नागर सुरर्षिगुरुवृद्धेभ्यः सिद्धेभ्यश्च सुरालये । मोथा, इन्द्रजौ, कूठ, सिरस के फूल और दिश्युत्तरस्यां तत्राऽपि देवायोपहरेद्वलिम् पश्चिमायां यथाकालं दैत्यभूताय चत्वरे। बीज, अजवायन,मुलहटी, अपराजिता,दंती, गंधर्वाय गवां मार्गे सवस्त्राभरणं बलिम् । चीता और बेलागरी इन सब को समान पितृनागग्रहे नद्यां नागेभ्यः पूर्वदक्षिणे। भाग लेकर पीसले तथा मूत्रवर्ग के साथ यक्षाय यक्षायतने सरितोर्वा समागमे २६ सिद्ध किया हुआ घी अभ्यंग, पान और चतुष्पथे-राक्षसाय भीमेषु गहनेषु च। रक्षसांदक्षिणस्यांतु पूर्वस्यां ब्रह्मरक्ष साम् नस्यादि द्वारा विधिवत प्रयोग किये जाने शून्यालये पिशाचाय पश्चिमांदिशमास्थिते पर सब प्रकार के ग्रहोन्माद, कुष्ठरोग, और अर्थ-देवता, ऋषि, गुरु, वृद्ध और ज्वर को दूर करदेता है । इस घृतका नाम सिद्ध, इन पांच प्रकार के ग्रहों की वलि महाभूतराव है। ग्रहग्रहण में बलिदानादि। . देवालय में देवै । इनमें से भी देवग्रह का "महा गृहणतिये येषु तेषां तेषु विशेषतः। वलि उत्तर दिशा में, और दैत्यभूतों का दिनेषुबलिहोमादीन्प्रयुजीत चिकित्सकः॥ वलि पश्चिम दिशा में चौराये में देवै । ___ अर्थ-जो ग्रह जिस दिन रोगी पर मा. गंधर्व ग्रहों के लिये गौके आने जाने के क्रमण करे उसी दिन उसके निमित्त विशेष मार्ग में वस्त्र और आभरणसहित वलि विशेष बलिदान और होमादि करे। प्रदान करे । पिलूनाशकग्रह के लिये नदी. For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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