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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ.२ उत्सरस्थान भाषारीकासमेत । (७३७ ) - - - स्तनस्वजिलासंदशसरभज्वरजागराः। धावनं विद सगंधत्वं क्रोशनं श्वानवच्छुनि पूयशोणितगंधश्व स्कंदापस्मारलक्षणम् । अर्थ-कांपना,रोमांच,खडे होना,स्वेदन, अर्थ-निस बालक पर विशाख अक्र- नेत्रों को बन्द करलेना, वहिरायाम, जीभ मण करता है उसके होश हयास जाते काटना, कंठ के भीतर कबूतर की सी रहते हैं,वह बार बार केशों को खंचता है, कजन, धावना, देह से विष्टा की सी गंध कंधों को झुकाता है, जंभाई लेता हुआ निकलना, और कत्तेकी तरह कय कय ककंधों को झुकाकर मलमूत्र का त्याग करता । रना, ये सब लक्षण श्वग्रह से पीडित बालक है, झाग डालता है, सिर आंख, हाथ के होते हैं। भकुटी और पांवों को नचाता है, माता के पितृग्रहगृहीत के लक्षण | .. स्तन और अपनी जिह्वा को काटता है। रोमहर्षो मुहस्त्रासः सहसा रोदनं ज्वरः। सरंभ, ज्वर, निद्रानाश, राध और रुधिर कासातीसारवमथुजुंभातशवगंधताः। की सी गंध ये सब उपद्रव स्कंदापस्मार से | अंगेवाक्षेपविक्षेपः शोषस्तंभाविवर्णताः१७ आकांत बालक के उपस्थित होते हैं। मुष्टिबंधः नुतिश्चाणोलिस्यस्युःपितृग्रहे मेषग्रहीत के लक्षण । अर्थ-रोमांच खडे होना, बार बार डर आध्मानं पाणिपादस्यस्पंदनं फेननिर्वमः ।। तृण्मुष्टिबंधातीसारस्वरदन्यविवर्णताः १५ कर उछल पडना, अकस्मात् रोपडना, कूजनं स्तनन छर्दिः कासहिध्माप्रमागराः ज्वर, खांसी, अतिसार, वमन, जंभाई,तृषा, मोष्ठदशांगसंकोचस्तंभरस्तामगंधताः १३ | मुर्देकी सी गंध, देहका इधर उधर फेंकना, का निरीक्ष्य हसन मध्ये विनमन ज्वरः। शोष, स्तब्धता, विर्वणता, मुट्ठी बांधना, मूकनेत्रशोफश्च नैगमेषग्रहाकृतिः १४ । आंखोंसे पानी बहना । ये सब लक्षण पितृअर्थ- पेट पर अफरा, हाथ पांव और मुव का फडकना, झाग डालना, तृषा, मुट्ठी ग्रह के आक्रमण से होते हैं। बांधना, अतीसार, स्वरमें दीनता, विवर्णता शकुनिग्रह के लक्षण । अत्रकूजन, बादल की गर्नकासा शब्द,वमन, | स्तांगत्वमतीसारो जिव्हातालुगले प्रणाः खांसी, हिचकी, निद्रानाश, ओष्ठदंशन, स्फोटाः सदाहरुकूपाकाःसंधिषु स्युःपुनःपुनः निश्यन्हि प्रावलीयंतोपाकोवक्त्रेगुदेऽपिवा अंगसंकोच, स्तब्धता, देहमें बकरे की सी ( का सा | भयं शकुनिगंधत्वं ज्वरश्च शकुनिग्रहे। गंध वा आमगंध, ऊपर को देखना,हंसना, | अर्थ-देहमें शिथिलता,अतीसार,जिवा देहके मध्यभाग का झुकजाना, ज्वर, मूच्छो, | तालु और गाल में घाव, दिनरात दाह एक आंख में सूजन ये सब उपद्रव नैगमेषग्रह के आक्रमण में उपस्थित होते हैं। वेदना और पाक से युक्त फोडों का संधियों श्वग्रहगृहीत के लक्षण । | में बार बार उत्पन्न हो है। कर मिटजाना, कंपो हृषितरोमत्य स्वेदश्चक्षुर्निमीलनमा मुखका पकना, गुदाका पकना, भय दहमें पहिरायामन जिव्हावंशोऽतः कंठकजनम | पक्षियों की सी गंध, और ज्वर ये सब For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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