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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७३६) अष्टांगहृदय ।। . बारहप्रकार के ग्रह। चबाता है, जगता रहता है, रोता है, कू"पुरागुइस्य रक्षार्थ निर्मिताः शूलपाणिना जता है, स्तन पीना छोडदेता है, उसका मनुष्यविग्रहापंच सप्त स्त्रीविग्रहा ग्रहाः १ स्वर बिगडजाता है, नखसे अकस्मात् अपने - अर्थ-पुरातन कालमें शूलपाणि शिवजी | और घायके अंगको खुरच डारता है । ने अपने पुत्र स्वामिकार्तिक की रक्षाके स्कंद गृहीत के लक्षण । . निमित्त बारह ग्रह निर्माण कियेथे, उनमें से तकनयनस्रावी शिरो विक्षिपते मुहुः । पांचग्रह मनुष्यरूप और सात स्त्री रूप थे । हकपक्षः स्तब्धांगः सस्वेदो नतकंधरः ६ ब्रोके नाम । | दंतखादी स्तनद्वंपी त्रस्यन् रोदिति विस्वरः स्कंदोविशाखोमेषाख्यः श्वग्रहः पितृसंशितः | वक्रवक्त्रो घमेल्लाला भृशमूर्ध्व निरीक्षते शकुनिः पूतना शीतपूतना दृष्टिपूतना २ वसासृग्गंधिरुद्विग्नो बद्धमुष्टिशकृच्छिशुः । मुखमंडलिका तद्वद्रेवती शुष्करेवती। । चलितैकाक्षिगंडभ्रः संरक्तोभयलोचनः ८ __ अर्थ--स्कंद, विशाखा, मेधाख्य, श्वग्रह, | स्कंदातस्तेन वैकल्यं मरणं वा भवेध्रवम् और पितृग्रह ये पांच पुरुषाकृति थे और श. ___ अर्थ-जो बालक स्कंदग्रह के झपाटे में कुनि, पूतना, शीतपूतना, दृष्टिपूतना, मुखमं आताहै, उसी एक आंखसे पानी निकला डलिका, रेवती और शुष्करेवती ये सात ग्रह करता है, बार बार सिरको इधर उधर फेंनारीरूप थे। कताहै, वह पक्षाघात, अंगकी जकडन, पसी- ग्रहों द्वारा ग्रहणीके लक्षण। | नों की अधिकता से पीडित होताहै, उसके तेषां ग्रहीष्यतां रूपं प्रततं रोदनं स्वरः।। कंधे झुक जाते हैं, दांतों को किटकिटाताहै . अर्थ-बालक को जव ग्रह ग्रहण करने स्तन पीना छोड देताहै, डरताहै, रोताहै, की इच्छा करते हैं वह वालक निरंतर रोने | उसके स्वरमें विकृति होजाती है, मुख टेढा लगता है उसको ज्वर होता है । पडजाता है, लार बहुत डालताहै, ऊपर को .. ग्रहों का सामान्यरूप । बहुत देखता है, उसके देहसे चवी और सामान्य रूपमुत्रासजृभाम्रक्षेपदीनताः। । रुधिर की सी गंध आने लगती है, उद्विग्न फेनस्रावौ दृष्टयोष्ठदतदंशप्रजागराः ॥४॥ होजाताहै, मुट्ठी बांध लेताहै उसका दस्त रोदनं कूजनं स्तन्यविद्वेषः स्वरवैकृतम् । रुकजाता है । उसकी एक ओर की आंख नखैरकस्मात्पारतः स्वधाव्यंगविलेखनम् । अर्थ-ग्रहों के आक्रमण का सामान्य गंडस्थल और भृकुटी कांपने लगती है, दोनों रूप यहहै कि जब ग्रह बालक पर झपटते नेत्र लाल होजाते हैं । इस रोगमें अत्यन्त हैं तब बालक भयत्रस्त होता है, जंभाई विकलता और मरण निश्चय होताहै । विशाखागृहीतके लक्षण । लेता है, भृकुटियों को इधर उधर चलाता है, कातर होता है, झाग डालता है, उंची। | संज्ञानाशो मुहुः केशलुंचनं कंधरानतिः ९ विनम्य जुंभमाणस्य शकृन्मृत्रप्रवर्तनम् । दृष्टि करके देवता है, ओष्ठ और दांतों को फेनोदमनमर्धाक्षहस्तभ्रपानर्तनम् १० For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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