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अ०३
उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
(७३५)
इसे कोई मातृकादोष कोई पूतनारोग, कोई
अन्य लेह । पृष्टारु, कोई गुदकुंद और कोई अनामिक पाठावेल्लद्विरजनीमुस्तभार्गीपुनर्नवैः। रोग कहते हैं।
सबिल्वव्यूषणैः सर्पिवृश्चिकालीयुतैः
शतम् ॥ ७६ ॥ उक्तरोगमें कर्तव्य ।
लिहानो मात्रया रोगैर्मुच्यते मृत्तिकोद्भवैः । तत्रधाच्या पयः शोध्यं पित्तश्लेष्महरौषधैः
___ अर्थ-पाठा,व यबिडंग,हलदी,दारुहलदी, अर्थ-इस रोगमें पित्तकफ नाशक औषधियों द्वारा धायकादूध शुद्ध करना चाहिये।
मोथा, भाडंगी, पुनर्नवा, बेलगिरी, त्रिकुटा,
और वृश्चिकाली इनके कल्क के साथ पकाव्रणलेपन शृतशीतं च शीतांवुयुक्तमंतरपानकम् ७१॥
या हुआ घी यथायोग्य मात्रा से सेवन करने सक्षौद्रतायशैलेन व्रणं तेन च लेपयेत् । पर बालक के मृत्तिका के खाने से उत्पन्न त्रिफलावदरीप्लक्षत्वक्वाथपरिषेचितम् । हए रोग नष्ट हो जाते हैं।
.. कासीसरोवनातुत्थमनोद्घालरसांजनैः ।
अन्य प्रयाग। लेप येदम्लपिष्टैर्वा चूर्णितैर्वायचूर्णयेत् ७३ सुश्लक्ष्णैरथवा यधीशंखसौवीरकांजनैः ।।
१३ व्याधेर्यद्यस्य भैषज्यं स्तनस्तेन प्रलेपितः । सारिवाशंखनाभिभ्यामशनस्यः स्थितो मुहूर्त धौतोनु पीतस्तं तम्त्वचाऽथवा ॥ ७४॥
जयेदरम् ॥ ७७ ।। रागकण्डूत्कठे कुर्याद्रक्तस्नायं जलौकसा । ___ अर्थ-जिस जिस रोग में जो जो औषध सर्व च पित्तव्रणजिच्छस्यते गुदकुट्टके ७५ कही गई हैं उन औषधों को घोटकर स्तनों __ अर्थ-शहत और रसौत मिलाकर ठंडा
पर लेप करदे । दो घडी पीछे सूख जानेपर पानी अथवा औटाये हुए ठंडे पानी में शहत
लेपको उतार दे और स्तनों को अच्छी तरह और रसौत डालकर पान करें और इसी
धोकर बालकको स्तनपान करावे तो बालक जलका घाव पर लेप करै । त्रिफला, बेर,
के वे वे रोग नष्ट हो जाते हैं। और पाकड की छालके क्वाथ से सेचन करके उसपर हीरा कसीस, गोरोचन, ।
इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाषाटी. नीलाथोथा, हरताल, रसौत इनको कांजी
___ कान्वितायां उत्तरस्थाने वालामय : में पीसकर लेप करदे । अथवा उक्त त्रि
प्रतिषेधोनाम द्वितीयोऽध्यायः फलादि का चूर्ण महीन पीसकर बुग्कदे । अथवा मुलहटी, शंख, सौवीरांजन ।
तृतीयोऽध्यायः अथवा असनकी छाल का चूर्ण बुरकदे । जो घाव में खुजली की अधिकता और ललाई हो तो जोक लगाकर रुधिर निकाल अथाऽतो बालग्रहप्रतिषेधं व्याख्यास्यामः । डले । गदक्टटकरोग में पित्त ब्रणके समा- अर्थ-अब हम यहांसे बालग्रह प्रतिषेध न चिकित्सा करना उत्तम है। - नामक अध्याय की व्याख्या करेंगे।
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