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( ७३४)
अष्टांगहृदय ।
अ० २.
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अन्य घी।
प्रतिसारयेत् ॥ ६५॥ खदिरार्जुनतालीसकुष्ठचन्दनजे रसे । तालु तद्वत्कणाशुठागाशकद्रससैंधवैः। सक्षीरंसाधितं सर्विमथु विनियच्छति ॥ अथे-तालुटक रोगतालुको उठाक__ अर्थ-खैर, अर्जुनकी छाल, तालीसपत्र, र शहत और जवाखार अथवा पीपल, सोंठ कूठ, और रक्तचंदन इनके काथ में दूधके / गोवर का रस और सेंधानमक मिलाकर प्र. साथ घी पकाकर पीने से बालककी वमन | तिसारण करै । रुक जाती है।
अन्य औषध । - दांतवाले बालककी चिकित्सा। श्रङ्गवेरनिशाभंग कल्कितं वटपल्लवैः ६६ सदतो जायते यस्तु दंताः प्राग्यस्थ चोत्तराः बध्वा गोशकता लिप्तं कुकूले स्वेदयेत्ततः । कुर्वीत तस्मिन्नुत्पाते शांतिकम् च- रसेन लिंपेत्ताल्वास्यं नेत्रे च परिषेचयेत् ॥
द्विजायते ॥ ६२॥ अर्थ-अदरख, हलदी और भांगरा इन दद्यात्सदक्षिणं यालं नैगमेषं च पूजयेत् । तीनोंको पीसकर लुगदी बनाकर ऊपर बड ___ अर्थ- जो बालक दांतों समेत जन्मलेता | के पत्ते लपेट देवे, ऊपरसे गोवर पोतकर तु. है, अथवा जिसके पहिले ऊपरवाले दांत
| ष की अग्निमें स्वेदित करे । फिर इसका रस निकलते हैं, उसकी स्वस्तिवाचन शांति
निचोडकर तालु और मुख पर लेपन करे कर्म करने चाहिये । दक्षिणा सहित उस
नेत्रों को परिषेचन करे। बालक को ब्राह्मण के लिये दान करदेवे और नैगमेषकी पूजा करे ।
तालुकंटक की दवा । तालुकंटक ।
हरीतकीवचाष्टफलकम् माक्षिकसंयुतम् । तालुमांसे कफः कुद्धः कुरुतेतालुकण्ट कम्॥
| पीत्वा कुमारःस्तन्मेक मुच्यते तालुकंटकात् तेन तालुप्रदेशस्य निम्नता मूनि जायते । ____ अर्थ-हरड, बच और कूठ इनका कल्क तालुपातेस्तनद्वेषः कृच्छ्रात्यानं शकद्वम् करके शहत मिलाकर स्तन के दूधमें मिलाकर तुडास्यकण्ड्बाक्षिरुजा ग्रीवादुर्धरता वमिः पीने से बालकका तालटक रोग जाता रहा है ___ अर्थ-मधुर आहारादि के सेवन से कफ
तमनामिक रोग। क्रुद्ध होकर ताळुमांस में तालुकंटक नाम रो
मलोपलेपास्वेदाद्वा गुदे रक्तककोद्भवः । ग को पैदा कर देता है । इससे मस्तक के तानो प्रणोऽन्तः कण्ड्मान् जायतेभूर्युपद्रव तालु प्रदेश में नीचापन, तालुपात, स्तनद्वेष
केचित्तं मातृकादोष वदत्यन्येऽपि पूतनम् ।
मष्टारुगुदकुंदं च केचिच्च तमनामिकम् ७० कठिनता से पानी वा दूधका पीना, दस्तका
अर्थ-बालक की गुदाके अच्छी तरह न पतलापन, तृषा, मुखमें खुजली, आंखों में दर्द
| धोनेसे मल लगे रहने के कारण अथवा पगरदन का न ठहरना और वमन ये उपद्रव उपस्थित होते हैं।
सीने से रक्त और कफसे गुदाके भीतर एक , उक्तरोग में उपाय । ताम्रवर्ण घाव हो जाता है, इसमें खुजली सत्रोत्क्षिप्य यवक्षारक्षोद्राभ्यां- चल चल कर बहुत से उपद्रव हो जाते हैं
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