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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७३२) अष्टांगहृदय । अ. २ - मोथा, खरैटी, माषपर्णी, मुद्गपर्णी, कच्ची । पाठा और गिरिकदंव इनको पीसकर शहत बेलगिरी, बिनोले इनके जल में दूध और और घी में मिलाकर सेवन कराता रहै । दहीका का पानी मिलाकर उसमें सिद्ध । अन्य प्रयोग। किया हुआ घी दांत से उत्पन्न हुए हुए अशोकरोहिणीयुक्तं पंचकोले च चूर्णितम् ॥ रोगों को शीघ्र नष्ट करदेता है तथा और बदरीघातलीधात्रीचूर्ण वा सर्पिषा द्रुतम् । भी अनेक प्रकार के रोगों को दूर करदेता ___अर्थ-अशोक की छाल, कुटकी, और है । यह औषध वृद्धकश्यय की बनाई। पंचकोल इनका चूर्ण अथवा बेर, धाय के फूल, और आमले का चूर्ण घी में सानकर दंतोद्भव में अतियंत्रणका निषेध । सेवन करावे । दंतोद्भवेषु रोगेषु न बालमतियंत्रयेत् ४३ ॥ स्वयमप्युपशाम्यति जातदंतस्य यद्गदाः । अन्य प्रयोग। अर्थ-दांतों के निकलने के रोगों बा- स्थिरावचाद्विवृहीकाकोलीपिप्पलीनतैः ॥ लक को चिकित्सा आदि का बहुत कष्ट न | निचुलोत्पलवर्षाभूभार्गीमुस्तैश्च काषिकैः। सिद्धं प्रस्थार्धमाज्यस्य स्रोतसां शोधनम् देवे क्योंकि दांतों के निकल आने पर ये परम् ।। ४९॥ सन रोग अपने आप शांत होजाते हैं। अर्थ-शालपर्णी, वच, दोनों कटेरी, बालक को अरोचकादि। अत्यहः स्वप्नशीतांबुलाध्मकस्तन्यसेविनः | काकोली, पीपल, तगर, निचुल, उत्पल, शिशोः कफेन रुद्वेषु स्रोतःसु रसवादिषु । सांठ, भाडंगी और मोथा प्रत्येक एक एक अरोचकः प्रतिश्यायोज्वरः कासश्च जायते | कर्ष लेकर इसके साथ आधा प्रस्थ घी कुमारः शुष्यति ततः स्निग्धशुक्लमुखेक्षणः पकाये । इसके सेवन से स्रोत खुलजाते हैं ___ अथे-दिनमें स.ना, शीतल जल, कफ यह इस काम के लिये सर्वोत्तम औषध है। दूषित स्तन्य इनको अत्यन्त सेवन करने से अन्य घत । बालक के रसवाही स्रोत कफ से एकजाते सिंह्यश्वगन्धा सुरसा कणागर्भ च तद्गुणम् । है और इससे अरोचक, प्रतिश्य , ज्वर अर्थ-कटेरी. असगंध, तुलसी और और खांसी उत्पन्न होजाते हैं, बालक स. पीपल इनके कल्क के साथ सिद्ध किया खता चला जाता है और उसके मुख और | हुआ घी पूर्वोक्त गुणकारक है। आंख चिकने और सफेद होजाते हैं । । अन्य घृत । उक्त अवस्था में उपाय । यष्टयाइपिप्पलीरोपनकोत्पलचन्दनैः ॥ सैंधवव्योषशार्गेष्टापाठागिरिकदवकान् ४६ तालीससारिवाभ्यां च साधितं. शुण्यतोमधुसर्पिर्ध्यामरुच्यादिषुयोजयेत् । शोषजिघृतम्। ___ अर्थ-पूर्वोक्त अरोचकादि रोग से सूखे । अर्थ-मुलहटी, पीपल, लोध, पनाख हुए बालक को सेंधा नमक, त्रिकुटा, कंजा नीलोत्पल, रक्तचंदन, तालीसपत्र और For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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