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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत । (७३१) को सेवन करने काले बालक को स्तनपान | मांसको पीसकर शहत में मिलाकर बालक से तृप्त कराके वमन करावे । के मसूडों पर धीरे धीरे मर्दन करने से दांत पयापानवाले को वमन । बहुत शीव्र निकल आते हैं। पतिंवत तनुं पेयामन्नादं घृतसंयुताम् ॥ दांतों के निकलने में धी। अर्थ-अन्न खानेवाले बालक को घी वचाद्विवृहतीपाठाकटुकातिविषाधनैः ३७ मिली हुई पतली पेया पानकराके वमन मधुरैश्च घृतं सिद्धं सिद्धं दशनजन्मनि । करावे । ___ अर्थ-वच, दोनों कटेरी, पाठा, कुटकी, विरेचनसाध्यरोग में कर्तव्य । अतीस और मोथा तथा मधुरगणोक्त द्रव्यों बस्ति साध्ये विरेकेण महून प्रतिमर्शनम् । से सिद्ध किया हुआ घी सेवन करने से युज्याद्विरेचनादीस्तुधाच्या एव यथोदितान् दांत शीघ्र निकल आते हैं । ___अर्थ-विरेचनसाध्य रोगों में वस्ति और | रजन्यादिचूर्ण का लेह । मर्शसाध्यरोगों में प्रतिमर्श का प्रयोग करना रजनी दारुसरल श्रेयसी वृहतीद्वयम् ३८ चाहिये । धायको भी विरेचनादि औषधों पृश्निपर्णी शतावाचलीढं माक्षिकसर्पिषा का सेवन करना चाहिये । ग्रहणीदीपनं श्रेष्ठं मारतस्यानुलोमनम् ३९ स्तन्यदोषनाशक लेह । अतीसारज्वरश्वासकामलापांडुकासनुत् । मूर्वाव्योषवराकोलजंबूत्वग्दारुसर्षपाः ३४ बालस्य सर्वरोगेषु पूजितं बलवर्णदम् ४०॥ सपाठा मधुना लीढाः स्तन्यदोषहराः परम् ___ अर्थ-हलदी, देवदारू,सरलकाष्ठ, हरड, ___ अर्थ मूळ,त्रिकुटा, त्रिफला, बेर, जामन दानो कटरी, पृश्निपी और सोंफ इनका की छाल, देवदारू, सरसों और पाठा चूर्ण करके घी और शहत में मिलाकर चौटे। इनका चूर्ण करके शहत के साथ चाटने से यह अवलेह ग्रहणी को प्रदीप्त करने में स्तन्यदोष जाते रहते हैं। उत्तम है, वायुका अनुलोमन करनेवाला है, __ दंतपाली का प्रतिसारण । अतीसार, ज्वर, श्वास, कामला, पांडुरोग, दंतपाली समधुना चूर्णन प्रतिसारयेत् ३५ | खांसी को दूर करदेता है । बालकों के सब पिप्पल्या धातकीपुष्पधात्रीफल कृतेन वा। रोगों में हितकारी है तथा बल और वर्ण को अर्थ-पीपल का चूर्ण अथवा धाय के बढानेवाला है। फूल और आमले का चूर्ण शहत में मिला अन्य प्रयोग। कर बालक के मसूडों पर धीरे धीरे मर्दन समंगाधातकीरोधकुटनटबलाहये। करे, इससे भी दांत निकल आते हैं। महासहानुद्रसहानुद्रविल्यालाटुभिः ४१ ___लावादि चूर्ण । सकासीफलैस्तोये साधितैः साधितं- . घृतम्। लावतित्तिरवल्लूररजः पुष्परसप्लुतम् ३६ क्षीरमस्तुयुतं हंति शीघ्र दंतोद्भवोद्भवान् ॥ द्रुतं करोति बालानां दंतकेसरबन्मुखम् । विविधानामयानेतद्वद्धकश्यपनिर्मितम् । . अर्थ-लवा और तीतर के सूखे हुए अर्थ-मजीठ, धायके फूल, लोध, केबटी For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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