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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ. २ उत्तरस्थान भाषाठीकासमेत । ( ७२९) द्रव्यों का काढा धाय और बालक दोनों को | बच और पंचकोल इन सब द्रव्यों का काढा पान करावे। पान करावे । घी और अवलेह। त्रिदोषदुष्ट स्तन्यके उपद्रव । धृताम्येभिश्य सिद्धाने पिसनं च विरेचनम् स्तन्ये त्रिदोषमलिने दुर्गध्याम जलोपमम् । शीतांश्चाभ्यंगलेपादीन युज्यात्- विषद्धमच्छं विच्छिन्नं फेनिलं चोपवेश्यते॥ अर्थ--पूर्वोक्त सारिवादि गणोक्त द्रव्यों के शनानाव्यथावर्ण मत्रं पीतं सितं घमम् । साथ अलग अलग सिद्ध किया हुआ घृत, ज्वरारोवकतुर्दिशुष्कोदारविजूभिकाः॥ अङ्गभगोऽगविपः कृजनं घेपथुमः । तथा पित्तनाशक विरेचन और शीतल अभ्यं घ्राणाक्षिमुखपाकाद्या जायतेऽन्येऽपि तंग तथा लेपों को उपयोग में लाये । गदम् ॥ २२ ॥ कफात्मकस्तन्य की चिकित्सा। क्षीरालसकमित्याहुरत्ययं चातिदारुणम् । लेष्मात्मके पुनः। ___ अर्थ-जब स्तनों का दूध वातादि तीनों यष्टयावसैंधवयुतं कुमारं पाययेत् घृतम् ॥ दोषों द्वारा दूषित हो जाता है तब दुर्गधित सिंधूत्थपिप्पलीमद्वा पिष्टैः क्षौद्रयुतैरथ । | कच्चा, जल के सदृश, बंधा हुआ, पतला, फराठपुष्पैः स्तनौ लिंपेच्छिशाश्चा टा हुआ और झागदार दस्त होने लगता है दशनच्छदौ ॥ १७॥ तथा मूत्र भी अनेक तरह की वेदनाओं से सुखमेवं धमेद्वालः __ अर्थ-कमानक स्तन्यमें मलहटी और युक्त, पीले, सफेद आदि वाँसे युक्त और सेंधानमक मिलाकर अथवा पीपल और सें- गाढा होने लगता है । इनके सिवाय उबर, धानमक इनमें घृत मिलाकर वालकको पा अरोचक, तृषा, धमन, सूखी डकार, जंभाई, न करावे । मेनफल के फूलों को पीसकर श. अंगभंग ( अंगडाई ) अंगविक्षेप ( हाथ पांवहत में मिलाकर धायके स्तनों पर और बा फेंकना ), अंत्रकूजन, कंपन, भ्रम, नासिका लक के ओष्ठोपर लगादे । ऐसा करने से आंख और मुखमें पाक तथा और भी बहुत बालकको सुखपूर्वक वमन होजाती है । से रोग पैदा होजाते हैं । इसको क्षारालसक . धायको वमन ।। कहते हैं, यह रोग बडा भंयकर होता है। तीक्ष्णैर्धात्री तु बामयेत् । उक्तरोगमें चिकित्सा क्रम । अथाचरितसंसर्गीमुस्तादि क्वथितं पिबेत्॥ तत्राश धात्री बालंच वमनेनोपपादयेत् ॥ तद्वत्तगरपृथ्वीकासुरदारुकलिंगकान् ।। अर्थ-इस रोगमें धाय और बालक दोनों अथवाऽतिविषामुस्तषड्ग्रन्थापंचकोलकम् | को शीघ्र ही वमन करावे । अर्थ-धायको वमनकारक तीक्ष्ण औषध अन्य उपाय। देकर वमन करावे | तत्पश्चात् पेयादि का हितायां च संसो वचादि योजयेद्णम् पथ्य देकर मुस्तादि गण का काथ पान क- निशादिवाऽथवामाद्रीपाठातिक्ताघनामयान् रावे, अथवा तगर, इलायची, देवदार और अर्थ-तदनंतर पेयादि क्रमसे पथ्य देकर इन्द्र जौ इनका काढा, अथवा अतीस, मोथा | वचादि गण वा हरिद्रादि गण का काढा अथवा ९२ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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