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अष्टांगहृदय।
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बार बार छूता हो, या जिस जगह हाथ न• जवायन, भाडंगी, देवदारु, सरलकाष्ट, मेंढा. लगा सकता हो वहीं पीडा समझना चाहिये। सिंगी, पीपल, कालीमिरच,इनका काढा ती
सिरकी पीडाका ज्ञान । न दिन तक पानकरावे। मूर्ध्नि रुजं चाक्षिनिमीलनात् ६
बातनाशक घृत । हदि जिहौष्ठदशमभ्वासमुष्टिनिपीडितैः।
| ततः पिवेदन्यतमंचातन्याधिहरं घृतम् । कोष्ठे विबंधवमथुस्तनदंशांत्रकूजनैः ७ | अतु चाच्छसुरामेवं स्निग्धं मृदु विरेचयेत्॥ आध्मानपृष्ठनमनजठरोन्नमनैरपि।
| पस्तिकर्म ततः . यस्तो गुह्ये च विण्मूत्रसंगत्रासदिगीक्षणैः॥ कुर्यात्स्वेदादींश्चानिलापहान् ।
अर्थ-जो बालक आंख बंद करलेता अर्थ-तदनंतर वातरोग नाशक किसी हो तो उसके सिर में दर्द समझना चाहिये । घृतको पिलाकर अच्छ सुराका अनुपान करावै जो जीभ और ओष्ठ को डसता हो, श्वास | और धायके स्निग्ध होने पर उसे मृदु विलेता हो, मुट्ठी बन्द करता हो तो उसके रेचन देवे । तदनंतर वस्तिकर्म करके वातहृदय में पीडा समझना चाहिये । जो मल | नाशक स्वेद अभ्यंगादि का प्रयोग करे । का निबंध, वमन, धायके स्तनों का काटना बालकके लिये अवलेह । और अंत्रकूज हो तो कोष्ट में दर्द समझना | राम्राजमोदासरलदेवदारुरजोन्वितम् १२ चाहिये । कोष्ठ के दर्द में अफरा, पीठ का | बालोलिह्माद् घृतंसा विपक्कं ससितोपलम् झुकना, जठर ऊंचा होना ये उपद्रव भी
अर्थ-रास्ना, अजमोद, सरलकाष्ट, देवहोते हैं । जो वस्ति वा गुदा में वेदना हो
दारु, इनका चूर्ण करके घृत मिलाकर अथवा तो मलमूत्रका विबंध और अमित होकर
रास्नादि के काढेके साथ घी और मिश्री पइधर उधर देखना ये लक्षण होते हैं।
काकर बालक को चटावे । धात्रीका उपचार ।
पित्तदूषित स्तन्यमें चिकित्सा । मथ धायाः क्रियां कुर्याद्यथादोषम्- पित्तदुष्टेऽमृताभीरुपटोलोनियवदनम् १३॥
यथामयम्। धात्री कुमारश्च पिवेत् क्वाथयित्वा___ अर्थ-धायकी चिकित्सा भी दोषानुसार
ससारिवम् । और रोगानुसार करना चाहिये।
अथवा त्रिफलामुस्तमूनिंबकटुरोहिणीः ॥
सारिवादि पटोलादि पद्मकादि तथा गणम् . बातात्मक स्तन्यकी चिकित्सा।
____ अर्थ--पित्तसे दूषित स्तन्य में गिलोय, तत्रवातात्मकेस्तन्ये दशमूलं यह पिवेत्॥ भथवाग्निवचापाठाकटुकाकुष्ठदीप्यकम् ।
सिसाकर, पर्वल, नीमकी छाल, रक्तचंदन सभार्गीदारुसरलवृश्चिकालीकणोषणम् ॥ और अनंतमूल इनका काढा धाय और बा' अर्थ--स्तन्य के बातसे दूषित होनेपर लक दोनोंको पान करावे अथवा त्रिफला, धायको तीन दिन तक दशमूल का काढा | मोथा, चिरायता, कुटकी इनका का ढा अथवा अथवा चीता, बच, पाठा, कुटकी, कूठ, अ. सारिबादि पटोलादि वा पमकादि गणोक्त
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