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म. २
उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
(७२७)
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द्वितीयोऽध्यायः
. अर्थ-पित्तसे दूवित हुआ दूध खट्टा
और कटु होता है, पानी में डालने से पीली अथाऽतो बालामयप्रतिषेधं व्याख्यास्यामः रेखायें पडजाती है तथा दाहकारक होता है। ___ अर्थ-अब हम यहाँसे वालामयप्रतिषेध कफदुष्ठधके लक्षण । नामक अध्याय की व्याख्या करेंगे। कफात्सलवणं सांद्र जलेमजतिपिच्छिलम् विविध वालक।
___ अर्थ-कफसे दूषित दूध नमकीन, गाढा; "विविधः कथितो पालाशीरानाभयपक्षनः | और पिच्छिल होता है, तथा पानी में डब स्वास्थ्यं ताभ्यामदुष्टाभ्यांपुष्टाभ्यारागसंभव: जाता है ।
अर्थ-बालक तीन प्रकार के होते हैं, सान्निपातिक दूधके लक्षण । दुग्धाशी ( केवल दूध पीनेवाला ) दुग्धान्ना | संसृष्टलिगं संसर्गात्रिलिंगं सान्निपातिकम् शी (दूध और भन्न खानेवाला ), अन्नाशी | अर्थ-दूध जो दोदो दोषों से दूषित ( केवल अन्न खानेवाला), दूषित दूध वा होता है, उसमें दो दो दोषों के लक्षण पाये अन्नके सेवन से रोगों की उत्पत्ति होती है | जाते हैं और जो तीनों दोषों के लक्षण से और अदूषित दूध और अन्न के सेवन से युक्त होता है वह दूध तीनों दोषों से दूषित निरोगता रहती है।
होता है। शुद्ध दूधके लक्षण ।
उक्तदूधपीने के लक्षण | यद्भिरकतां याति न च दोषैरधिष्ठितम् । यथास्वलिंगांस्तव्याधीनजनयत्युपयोजितं तद्विशुद्धं पयः
अर्थ-बालक जो इन वातादि दोषों से ___ अर्थ-जो दुध पानी में डालने से जल | दूषित दूधको पीता है, उसके उस उस में मिलकर बिलकुल एक होजाता है और / दोषके लक्षणवाली व्याधियां उत्पन्न हो जिसमें वातादि दोषों का अधिष्ठान नहीं | जाती हैं । होता है, वह शुद दूध होता है ।
रोनेसे पीडाका ज्ञान । वातदुष्टदूधके लक्षण । | शिशोस्तीणामतीष्णांचरोदनाल्लक्षयेगुर्ज
वाताहुष्टं तु प्लवतेऽभसि अर्थ-बालक के रोनेसे ही उसके रोग कषाय फोनलं रूशं वर्चीमूत्रविबंधकृत् ।। की दशा पहचानी जाती है, जो पीडा - अर्थ-बात से दूषित हुआ दूध पानीमें
बहुत हो तो बालक अधिक रोता है और तैरता है, कसीला, झागदार और रूक्ष
कम हो तो कम गेता है। होता है तथा विष्टा और मूत्रका विवंध क
अवयव विशेष में रोग । रता है।
सोयं स्पृशेभृशं देशं यत्र च स्पर्शनाक्षमः। पित्तदुष्टके लक्षण । तत्र विद्यार्ज पित्ताइष्टाम्छकटुक पोतराज्यप्सु दाहकृत् । अर्थ-बालक देहके जिस अवयव को
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