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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७२६) अष्टांगहृदय । लांघने न पावे । इन बातों पर विशेष दृष्टि । मक घृत बाणी, मेधा, स्मृति और जठराग्नि रखना चाहिये । | को बढानेवाला है। . घृतपान विधि । अन्य घृत। ब्राझीसिद्धार्थकवचासारवाकुष्टसैंधवैः। | वचामृताशठीपथ्याशंखिनीवेल्लनागरैः ४७ सकःसाधितं पीत अपामार्गेण च घृतं साधितं पूर्ववद्गुणैः। बाङ्मेधास्मृतिकृद्धृतम् ॥ ४३ ॥ | अर्थ-बच, सौंठ, कचूर, हरड, शंखनी पायुज्यं पाप्मरक्षोप्नं भूतोन्मादनि.हणम् । वायबिडंग, सौंठ, और भोंगा डालकर सिद्ध अर्थ-ब्राह्मी, सफेद सरसों,बच,सारिवा, किया हुआ घी पूर्ववत् गुणकारक है। कूठ, सेंधानमक और पीपल इनसे सिद्ध चार योग । किया हुआ घी सेवन कराने से बालक की | हेमश्वेतववाकुष्टमर्कपुष्पी सकांचना ४८॥ बाणी, मेधा, स्मृति और आयु बढती है । हेममत्स्याक्षकः शखः कैडर्यः कनकं वचा । यह घृत पापनाशक,रक्षोन और भूतोन्माद | चत्वारपते पादोक्ताः प्राश्या मधुघृतप्लुताः वर्ष कीढा वपुर्मेधावलवर्णकराः शुभाः। निवारक होता है। अर्थ-(१) सुवर्ण, सफेद षच और अन्य प्रयोग। घचेदुलेखा मंडूकी शंखपुष्पी शतावरी ४४ / कूठ । (२) अर्केपुष्पी और कांचना ३) ब्रह्मसोमामृताम्राह्मीः कल्कीकृत्य- सुवर्ण, मछछी और शंख तथा ( ४ ) काय पलांशिकाः। | फल, सुवर्ण और बच । इन चार योगों अष्टाङ्गविपचेरसर्पिःप्रस्थंक्षीरं चतुर्गुणम्॥ को मधु वा घी में मिलाकर एक बर्ष तक तत्पीतं धन्यमायुष्यं वाङ्मेधास्मृतिबुद्धिकृत् लेहन करै । इससे शरीर मेधा, बल, और • अर्थ-बच, बाबची, मंडूकपर्णी, शंख वर्णकी वृद्धि होती है। पुष्पी, सितावर, सोमलता, गिलोय, और बचादि का प्रयोग । ब्राझी प्रत्येक एक एक पल लेकर पीसले और घी एक प्रस्थ, दूध चार प्रस्थ, इन बचायष्टयाइसिंधूत्थपथ्यानागरदीप्यकैः । शुध्यते वाग्यविीदैः सकुष्टकणजीरकैः । . 'सबको यथोक्त गति से पाक करे । यह ___ अर्थ-बच, मुलहटी, सेंधानमक, हरड, भष्टांग घृत आयु, बाणी, मेधा, स्मृति और सौंठ, अजवायन, कूठ, पीपल, और जीरा बुद्धिको बढानेवाले हैं। सारस्वत प्रत । इनके साथ पकाया हुआ घी सेवन करनेसे मजाक्षीराभयाव्योषपाठोप्राशिसैंधवैः ।। बाणी शुद्ध होजाती है। सिद्धम् सारस्वतं इतिश्री मथुरानिवासी श्रीकृष्णलालकृत सर्पिमेधास्मृतिबन्हिकृत्।। भाषाटीकान्वितायां अष्टांगहृदयसं. '' अर्थ-बकरी का दूध, हरड, त्रिकुटा, । हितायां उत्तरस्थानेवालो पचरणी. 'पाठा, बच, सहजने के बीज, सेंधानमक योनाम प्रथमोऽध्यायः॥१॥ 'इनके साथ सिद्ध किया हुआ सारस्वत ना - - - -- For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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