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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म. ? उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत । (७९५) से ललाई, वेदना, ज्वर, सूजन, दाह, सरंभ | अपस्तनस्य संयोज्यःप्रीणना मोदकः शिशोः मन्यास्तंभ, और अपतानक रोग होते हैं। दीपनो बालबिल्वैलाशर्करालाजमुक्तुभिः। रागादि की चिकित्सा। संग्राहाँधातुकापुष्पशर्करालाजतर्पणः ४० अर्थ-स्तनपान का त्याग कराने के पीछे तेषां यथामयं कुर्याद्विभज्याशु चिकित्सितम् अर्थ-ऊपर कहे हुए दुर्वेधसे उत्पन्न हुए चिरोंजी की मिंगी, मुलहटी, मधु, धानकी रोगोंमें यथायोग्य चिकित्सा करना चाहिये । खील, और मिश्री इनसे बनाकर प्रीणन उचितस्थान में बिधनेका फल ।। मोदक देवे । तथा कच्ची बेलगिरी,इलायची, स्थाने व्यभन्न रुधिरंन रुग्रागादिसम्भवः ॥ शर्करों, और खील इनको डालकर अग्निको ___ अर्थ-यथायोग्य स्थानमें विद्ध होने से / संदीपन करानेवाले मोदक देवे, तथा धाय न रुधिर झरता है, न वेदना और ललाई के फूल, शर्करा ओर धानकी खील के बने पैदा होती हैं। हुए संग्राही मोदक बालक को खाने के लिये सूत्रस्थापन । देवे । नेहाक्तं सूच्यनुस्यूतं सूत्रं चानु मिधापयेत् । सौम्यौषध सेवन । मामे तैलेन सिंचेच्च वहलां तद्वदारया ३६ रोगांश्चास्य जयेत्सौभ्यभैषजैरविषादकैः। विध्येत्पाली हितभुजः संचार्याथ स्थवीयसी पर्तिस्यहात्ततो रूढं वर्धयेत शनैः शनैः३७ अन्यत्रात्ययिकव्याधेर्विरेकं सुतरां त्यजेत्॥ अर्थ-कर्ण वेधन के पाछे सुई में पोये ___ अर्थ-यदि बालक के किसी प्रकार का रोग होजाय तो उसे क्षोभरहित और सौम्य हुए डोरे को स्नेहाक्त करके कानमें लगा दे औषधों से दूर करे । जो किसी प्रकार का वे । आमावस्था में तेल चुपडता रहे । जो भयंकर उपद्रव न हुआ हो तो विरेचन कदापाली मोटी हो तो पूर्ववत् आरा से वेधकर हितकारी पथ्य देवे । फिर तीन दिन पीछे अ. | पि न देना चाहिये । बालक को त्रासनिषेध । : धिक मोटी बत्ती प्रवेशित करे । फिर कानका छेद सूख जाने पर उसे धीरे धीरे बढावै । त्रासयन्नाविधेयतं त्रस्तं गृहणति हि प्रहाः । - दांतनिकलने पर कर्तव्य ।। अर्थ-बालक को कभी वृथा भय नहीं अथैनं जातदशनं क्रमेणापानयेत्स्तनात् । दिखाना चाहिये क्यों कि भतभीत बालक को पूर्वोकं योजयेत्क्षीरमन्नं च लघु वृहणम् ॥ बहुधा ग्रह ग्रहण करलेते हैं। अर्थ-जब बालक के दांत निकल अवें वस्त्रादि द्वारा रक्षण । तब धीरे धीरे उसे स्तनपान करना छुडा दे | वस्त्रवातात्परस्पर्शात् पालयेल्लंधिताच्चबे और पूर्वोक्त रीति से बकरी आदि का दू. तम् ॥ ४२ ॥ ध और लघु तथा वृंहण अन्नका सेवन करावे ___ अर्थ-बालक के शरीर पर अन्य मनुष्य बालक को मोदक। . | के कपडे की वायु न लगे, कोई कर्कशता प्रियालमजमधुक मधुलाजासितोपलैः। । से उसे स्पर्श न करे, अथवा कोई उसे For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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