SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 821
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७२४) अष्टांगहृदय । उज्ज्वल धुली हुई, समान और कोमल बि-। अर्थ-छटे सातवें घा आठवें महिने में छोना से युक्त शय्या बिछावै, इस शय्या को शुभदिन देखकर बालक के निरोग होनेपर रक्षोघ्ननाशिनी धूनी देवै और इस शय्या शीत कालमें बालक को धायकी गोदीमें बैका सिरहाना उत्तर व पूर्व दिशा में करके ठाकर आश्वासन देता हुआ बालक के दोनों बालक को उसपर शयन करावै । कानों को बेधे । बालक का मणिधारण । कर्णव्यधकी रीति । काको विशस्तःशस्तश्च धूपनेत्रिवृतान्वितः शस्तश्च धूपनात्रवृतान्वितः प्राग्दक्षिणं कुमारस्य भिषग्यामं तु योषितः॥ जीयत्खङ्गादिशूगोत्थान् सदा बालः शुभान्। दक्षिणेन दधत्सूची पालिमन्येम पाणिना। मणीन् ॥ २६ ॥ मध्यतः कर्णपठिस्य किंचिद्डाश्रयं प्रति ॥ धारयेदौषधीःश्रेष्ठा ब्राहयेंद्रीजीवकादिकाः जरायमात्रप्रच्छन्ने रविरश्म्यवभासिते। हस्ताभ्यां ग्रीवयामूर्ना विशेषात्सततवचाम् तस्य निश्चलम् सम्यगलक्तकरसांकिते ॥ आयुर्मेधास्मृतिस्वास्थकरींरक्षोभिरक्षिणीम् विध्येवकृते छिद्रे सकृदेवर्जु लाघवात् । ___ अर्थ-जीते हुए गेंडे आदि के सींगोंसे | नोर्व नपार्श्वतो माधः शिरास्तत्रउत्पन्न तथा सर्पादि की मणियों को बालक हि संश्रिताः ॥ ३३ ॥ का शुभ कामोंके लिये धारण कर तथा कालिका मर्मरी रक्ताब्राह्मी, इन्द्रायन, और जीवक इन औषधों | अर्थ-प्रथम ही बालक का दाहिना काका हाथमें धारण करै और बचको बालक की न और बालिका का बांयां कान बेधे और ग्रीवा और सिरमें विशेष रूपसे बांधे । ये | दाहिने हाथमें सुई और बांये हाथसे कर्णपाआयु, मेधा, स्मृति और स्वस्थता को देने ली को पकडे और कानकी पीठके बीचवाले वाली तथा राक्षसों के भयको दूर करने भागके समीपवर्ती गंडस्थल में जहां केवल बाली हैं। | झिल्ली के समान खाल होती है और उसमें पांचवें छटे महिने में कर्तव्य । । होकर सूर्यको किरण का आभास पडता हो पंचमे मासि पुण्येऽन्हि धरण्यामुपवेशयेत् | उस दैवकृत छिद्रमें अलक्तक रससे अंकित षष्ठऽग्नप्राशनं मासि क्रमात्तत्र प्रयोजयेत् । | जगह में ऐसी रीति से पकडे कि हिलने न .... अर्थ-पांचवें महिने में शुभ दिन देखकर पावै फिर इसमें एकही बार हलके हाथसे सीबालक को पृथ्वी पर बैठावै । छटे महिनेमें | धा छेद करे, ऊपर नीचे वा पसवाडे को छोअन्नप्राशन करावै। फिर क्रमसे अन्य शभ | डदे क्योंकि वहां कालिका, मर्मरी और रक्ता कर्म करावै । नसों का जाल होता है। कर्णव्यधका काल। सिराव्यध में रागादि । षट्सप्तमाएमासेषु नीरुजस्य शुभेऽहनि ॥ तयधादागरुग्ज्वराः। कर्णी हिमागमे विध्येद्धाञ्यंकस्थस्य- सशोफदाहसंरम्भमन्यास्तंभापतानकाः ॥ सांत्वयन् अर्थ-इन कालिकादि सिराओं के विधने For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy