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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्तरस्थान भाषाटीकासमेत । (७२३) किसी प्रकार की विकलता न हो, ब्रह्मचर्य | भौटाया हुआ गौ का दूध मिश्री मिलाकर से रहती हों अर्थात् मैथुन से रहित हों, | पिलाना चाहिये । इस तरह सिद्ध किया हुआ वर्ण और प्रकृति में समान हों, रोगरहित | गौ का दूध भी बकरी के दूधके समान हो, मध्यम अवस्थावाली हों, उनके बालक | गुणकारी होजाता है। जीते हों, लोलुपता, अर्थात् कामादि प्रसंग | छटीरातका विधान। . से रहित हों । इन धायों को आहार विहार षष्ठी निशां विशेषण कृतरक्षाबलिक्रियाः । द्वारा अत्यन्त आदर से रखनी उचित है। जागृयुर्वाधवास्तस्य धतः परमांमुवम् २१ स्तन्यनाश के कारण । अर्थ- छटी रातके दिन बालक की रक्षा शुक्क्रोधलंघनायासाःस्तन्यनाशस्य हेतवः | के लिये बलिदानादि मंगल क्रिया करके स्तन्यस्य सीधुवयामि मद्यान्यानूपजारसाः उस बालक के स्वजन जन अत्यन्त आनंद क्षीरं क्षीरिण्यओषध्यः शोकावश्चविपर्ययः करते हुए जागरण करें। अथे-शोक, क्रोध, उपवास और परि दसवें दिनका कर्तव्य । श्रम ये दूधः के नाश के हेतुः हैं । और दशमे दिवसे पूर्णे विधिभिः स्वकुलोचितः सीधु के सिवाय मद्य, आनूप मांसरस, दूध कारयेत्सृतिकोत्थानं नामबालस्य चार्चितम् दूधवाली औषधे और शोकादि का बिभ्रतोऽगैमनोहालरोचनागुरुचन्दनम् । विपर्यय अर्थात् हर्ष, क्रोधराहित्य, तृप्ति नक्षत्रदेवतायुक्तं बांधवं वा समाक्षरम् २६ अथे-अपने कुलकी मर्यादा के अनुसार पर्यन्त भोजन और विश्राम ये दध के दसदिन पूरे होनेपर सूतिका का उत्थान दूधको रोगका हेतुत्व । करै और बालक के देहपर मनसिल, हरताल विरुद्धाहारंभुक्तायाः क्षुधिताया विचेतसः। | गौरोचन, अगर और चन्दन लगाकर कुलाप्रदुधातोगर्भिण्याः स्तन्यं रोगकरं शिशोः नुगत नक्षत्रके देवताओं से युक्त समाक्षर . अर्थ-जो गर्भिणी विपरीत आचरण वाला नाम बालक का रक्खै । करने वाली है, भूखी रहती है, जिसका आयुपरीक्षा। चित्त भ्रांतियुक्त होता है और जिसकी धातु ततःप्रकृतिभेदोक्तरूपैरायुः परीक्षणम् । दक्षित होती हैं, ऐसी स्त्रियों का दूध बालक प्रागुदशिरसाकुर्यात्वालस्यज्ञानवानभिषक को रोग उत्पन्न करनेवाला होता है। शुचिौतापधानानि निर्वलानि मृदानि च। दूधकेअभावमें कर्तव्य । शय्यास्तरणत्रासांसि रक्षोप्नधूपितानि च स्तन्याभावे पयश्छागं गव्यं वा तन्दुणं पिवेत अर्थ-नामकरण के पीछे ज्ञानवान् वैद्य हस्वेन पंचमलेन स्थिरया धा सितायुतम् । | को उचितहे कि प्रकृति भेदके अनुसार अर्थ-जो माता का षा धायका दूध न | विकृतविज्ञानीयाध्याय में कहे हुए लक्षणों के मिले तो बकरी का दूध पिलाना चाहिये । द्वारा वालक की आयुकी परीक्षा करै । भथवा. लधुपंचमूल, वा शालपर्णी डालकर | बालक के शयन कराने के निमित्त पवित्र For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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