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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ. कल्पस्थान भाषाटीकासमेत । (७१७) स्वरसः स समुहिष्टः ___ अर्थ-इन स्वरसादि का परिमाण और अर्थ-किसी औषधि को समान भूमि कल्पना ब्याधि और कोष्ठ के बलके अनुसार से उखाड कर उसी समय पत्थर पर कूट स्थिर करने चाहिये । सुश्रुत ने कहा है कि कर बस्त्र निचोडले, इस निकले हुए रस मात्रा का कोई नियम नहीं हैं, व्याधि, रोगी को स्वरस कहते हैं। का कोष्ठ, रोगी का बल और अवस्था तथा कल्क के लक्षण । देश और काल इन सबकी विवेचना करके ____कल्का पिष्टो द्रयाप्ठतः। औषधकी मात्रा निर्दिष्ट करना चाहिये । चूर्णोऽप्लता । अर्थ-पत्थर पर पानी डाल डाल कर इसी तरह ब्याध्यादि और देशकालादि को जो द्रव्य पीसा जाता है, उसे कल्क कहते देखकर स्वरसादि पांच प्रकारमें से कोई एक हैं जो द्रव्य सूखेहुए महीन पीसे जाते हैं, कल्पना करनी चाहिये । स्वरसका मध्यम मान । उसको चूर्ण कहते हैं। मध्यं तु मानं निर्दिष्टं स्वरसस्य चतुःपलम् क्वाथ के लक्षण । अर्थ-स्वरसकी मध्यम मात्रा का परिमाश्टतः काथः अर्थ-जो द्रव्य पानी में औटाकर छान ण चार पल है। लिया जाता है, उस छनेहुए जलको काथ कल्कादिका मध्यम मान । पेप्यस्य कर्षमालोडय तद्रवस्य पतनये कषाय वा काढा कहते हैं। अर्थ-पिसहुए द्रव्य अर्थात् कल्क वा शीतकषाय के लक्षण । शीतो रात्रि द्रवेस्थितः ॥१०॥ | चूर्ण का मध्यम परिमाण एक कर्ष है, इस ___ अर्थ-रातभर किसी द्रव्यको पानीमें भि. को तीनपल पतले पदार्थ में मिलाकर सेवन गोकर प्रातःकाल मलकर छान लिया जाता करे। क्वाथ का प्रमाण । है, उसे शीतकषाय कहते हैं। कार्थ द्रव्यपले कुर्यात्प्रस्थार्धे पादशेषितम। फांट के लक्षण । अर्थ-एकपल द्रव्यको आधे प्रस्थ पानी सद्योभिषुतपूतस्तु फांटः में डालकर औटावै और चौथाई शेषरहने - अर्थ-तत्काल गरम पानी में डालकर पर उतारकर छान लियाजाय, यह काथ और मलकर कोई द्रव्य छान लियाजाता है का परिमाण है। उसे फांट कहते हैं। शीतकषाय का प्रमाण । योजना विधि । | शीतं पले पलैः षभिः तम्मानकल्पने ॥ अर्थ-एक पल द्रव्यको छः पल द्रवमें युज्याव्याध्यादिवलस्तथा च वचनं मुनेः। मात्रायानव्यवस्थाऽस्तिव्याधिकोष्टबलंवयः मिलाकर जो बनाया जाता है, उसे शीत आलोच्य देशकालौच योज्या तक्षकल्पना | कषाय कहते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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