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अष्टांगहृदय ।
भूतैश्छायातपांब्वाधैर्यथाकालं च सेवितम् | न मिल सके तो एक वर्षके भीतरको लावै। अवगाढमहामूलमुदीची दिशमाश्रितम्
परन्तु गुड, घी, शहत, धनियां, पीपल और __ अर्थ-जांगल और साधारण देश में
वायविडंग जितने पुराने हों उतनाही अच्छा समभूमि पर जो ऊंची हो न नीची हो,
है, इनको नया न लावै । उत्तम मृतिका से युक्त क्षेत्रमें, पवित्र स्थान
पयआदि का ग्रहणप्रकार। .. में, जिसमें श्मशान, चैत्य, गत वा सर्पकी
| पयो बाष्कयणं ग्राह्य विणमूत्रं तच्च नीरुजम् बांबी नहो, तथा छूने में कोमल और अनु- | वयोबलवतां धातुपिच्छ शृंगखुरादिकम् . कूल जल से युक्त जिसमें कुशा और रोहिष ___अर्थ-वष्कयणी अर्थात् जिसका बच्चा तण उगते हों, जिसमें हल न चला हो, तरुण होगया हो उस गौका दूध, गोवर
और बडे बडे उंचे वृक्षों से आक्रांत न हो, और मूत्र ग्रहण करे क्योंकि ये निर्दोष होते ऐसे स्थान में अपने वर्ण और रसादि से | हैं । तथा तरुण और बलवान् प्राणी के युक्त पैदा हुई औषध उत्तम होती है । तथा रक्तादि धातु, पूंछ, सींग और खुर आदिका जिसमें कीडे न लगे हों, जो अग्नि से न | ग्रहण करे । जली हो, और आकाशादि विकृत भूतों से
कषाययोनि पांचरस ।
कषाययोनयः पंच रसा लवणवर्जिताः । अनासेवित,छाया, धूप और जल से उचित
रसः कल्कः श्टतः शीतः फांटश्चति काल में सेवित, जिसकी जड पश्वी में
प्रकल्पना ॥८॥ बहुत दूर तक गई हो और जो उत्तर दि. पंचधैवं कषायाणां पूर्व पूर्व बलाधिका । शाका आश्रय लेकर अवस्थित हो ऐसी अर्थ-छः रसोंमें से नमकरस को छोड सब औषधे उत्तम होती हैं। * कर मधुरादि पांचरस कषाययोनि होते हैं,
अर्थात इन पांचरसों से ही स्वरसादि पांच औषधलाने की विधि।
प्रकार के कषायों की कल्पना होता है । अथ कल्याणचरितःश्राद्धः शुचिरुपोषितः। गृर्णायादाषधं सुस्थं स्थितं काले च
लवणरस से स्वरसादि किसी की भी कल्पना
कल्पयेत् ॥५॥ | नहीं होती है । स्वरस, कल्क, शत, शीत सक्षीरं तदसंपत्तावनतिक्रांतवत्सरम्। और फांट, इन पांच प्रकार की कषायकल्पऋते गुडघृतक्षौद्रधान्यकृष्णाविडंगतः
ना होती हैं इन पांचों में यथापूर्व अधिक अर्थ-उक्त गुणविशिष्ट औषध को लाने के लिये स्वस्त्ययनादि मंगल करके श्रद्धावान्,
गुणशाली होते हैं, अर्थात् फांट की अपेक्षा पवित्र और उपवास किया हुआ मनुष्य जाय
शीतकषाय, शीतकषायकी अपेक्षा शतक
षाय, शृतकषायकी अपेक्षा कल्क, और और औषधको लाकर सावधानी से रक्खे ।
कल्ककी अपेक्षा स्वरस बलशाली होता है । तदनंतर उचित काल में इस औषधको दूध
| स्वरस के लक्षण । में डालकर मीली करे । यदि हरी औषध | सद्यः समुद्धतक्षुण्णायः सषेत्पटपीडितात
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