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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अं. ५ www. kobatirth.org कल्पस्थान भाषाटीकासमेत । स्निग्ध, अम्ल, लवण और उष्ण निरूहण द्वारा निकाल दे । वे निरूहण ये हैं, यथा- कांजी, मदिरा, बेर, कुलधी, जौ इनसे सिद्ध किये हुए रास्ना और हलदी के तेल से, अथवा गोमूत्र से साधित किये हुए उक्ततेलों से वा पंचमूल के काढ़े से सिद्ध किये हुए तेलसे वा रास्ना वा हलदी के पृथक् पृथक् तेलों से निरूहण देवे अथवा इन्हीं तेलों से सायंकाल के भोजन के पीछे अनुवासनवस्ति देवे । । ( ७१३ ) | मेनफल और तिलका तेल मिला हुआ इनके द्वारा वस्तिका प्रयोग मानते हैं । पित्तावृत वग्ति मैं उपाय । वृद्दाहरागसंमोहवैवर्ण्यतमकज्वरैः ३३ ॥ विद्यात्पित्तावृतं स्वादुतितस्तं बस्तिभिर्हरेत् अर्थ - पित्तावृत स्नेह वस्तिमें तृषा, दाह राग, मोह, विवर्णता, तमकश्वास और ज्वर ये उपद्रव होते हैं पित्तावृत वस्तिको मधुर और तिक्त द्रव्यों की वस्ति द्वारा निकालना चाहिये | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कफावृत स्नेहवस्ति उपाय | संद्राशीतज्वरालस्यप्रसेकारुचिगौरवैः ३४ ॥ संमूर्छाग्लानिभिर्विद्यात्ले मणास्त्रे हमाव्रतम् कषायतिक्तकटुकैः सुरामूत्रोपसाधितैः ३५ फलतैलयुतैः साम्लैर्बस्तिभिस्तं विनिर्हरेत् । अर्थ-तंद्रा, शीतज्वर, आलस्य, प्रसेक,अरुचि भारापन, मुच्छी और ग्लानि हो तो जान ले ना चाहिये कि स्नेहवस्ति कफसे आवृत है । कषाय, कटु और तिक्त रसोंसे युक्त सुरा और गोमूत्र से साबित खट्टेद्रव्यों से मिली हुई फल तैल से युक्त वस्तिद्वारा उसको नि काले | यहां फल तैलसे उष्ण वीर्यवाले अ अत्यशनावृत स्नेहवस्तिका उपाय | छर्दिमूर्छारुचिग्लानिशूलनिद्रां मर्दनैः । आमलिंगैः सदाहस्तं विद्यादत्यशनावृतम् कटूनां लवणानां च क्वाथैइचूर्णैश्च पाचनम् मृदुर्विरेकः सर्व च तत्रमुविहितं हितम् । अर्थ - त्रमन, मूर्च्छा, अरुचि, ग्लानि, शूल, निद्रा और अंगमर्द इन सब लक्षणों के प्रस्तुत हो ने पर जान लेना चाहिये कि स्नेहवस्ति अतिभोजन से आवृत है इसमें आम दोष के लक्षण और दाह भी होता है इसमें कटु और लवण द्रव्यों काथ और चूर्ण द्वारा पाचन हितकारी है । तथा मृदु विरेचन और आ 1 चिकित्सा में कही हुई सब औषधें हितकारी होती हैं । पुरीषावृतस्नेहवस्ति | विण्मूत्रानिलसंगार्तिगुरुत्वाध्मानहृदूग्रहैः ॥ स्नेहं विवृतज्ञात्वा स्नेहस्वेदैः सवर्तिभिः । श्यामाथिल्वादिसिद्धैश्चनिरूहैः सानुवासनैः निर्हरेद्विधिना सम्यगुदावर्त हरेण च । अर्थ- मल, मूत्र और अधोवायु की रुका वट, वेदना, देहमें भारापन, अफरा, हृदग्रह इन लक्षणों के उपस्थित होनेपर जान लेना चाहिये कि स्नेहवस्ति विष्टा से आवृत है । इसको स्नेहन, स्वेदन, वातप्रयोग तथा श्यामा और विल्वादि पंचमूल से सिद्ध की हुई निरूहण और अनुवासन देवै, तथा उदावर्त में कही हुई संपूर्ण विधियों द्वारा पुरीषावृत वस्तिको निकालने का उपाय करै । अभुक्तादि में स्नेहवस्ति । खरोटादि फलों के तेलका ग्रहण है कोई कोई | अभुक्ते शूनपायौ वा पेयामात्राशितस्य च । ९० For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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