________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कल्पस्थान भाषाटीकासमेत।
(७११ )
अपामः पवनो बस्ति तमाश्वेवापकर्षति ।। निसाथ और हरड को पीसकर गोमूत्र कुष्टकमुककल्कं वा पासयेताम्लसंयुतम् ॥
| के साथ पान कराने से भी वस्तिका अनुऔण्यात्तैक्षण्यान्सरत्वाञ्च बस्ति सोऽस्या
लोमन होता है । दोषके पक्वाशय में स्थित
नुलोमयेत्। गोमूत्रेण त्रिवृत्पथ्याकल्कं चाधोनुलोमनम |
होने पर स्वेदन करके दशमूल के काढे की पक्काशयस्थिते स्थिन्ने निरूहो दशमूलीका वस्ति दवै । अथवा जौ, बेर और कुलथी घवकोलकुलत्थैश्च विधेयो मूत्रसाधितः॥ को गोमत्र में सिद्ध करके वस्ति देवे । बस्तिगोमूत्रसिद्धैर्या सामृतावंशपल्लवैः।
अथवा गिलोय, बांसके पत्ते, पूतीकरंज की -पूतीकरज्जत्वक्षत्रशठीदेवाबरोहिषैः ॥ सतैलगुडसिंधूत्थो विरेकोषधकल्कवान् ।
छाल और पत्ते, कचूर, देवदारु और रोहिबिल्वादिपञ्चमूलेन सिद्धो बस्तिहरःस्थिते षतृण इनः सव द्रव्यों को गोमूत्र में सिद्ध शिरःस्थे नावनं धूमःप्रच्छाद्यं सर्षपैः शिरा। करके इसमें तेल, गुड, सेंधा नमक, तथा
अर्थ-उक्त हेतुओं से मूर्छादि रोगों के विरेचक औषधे डालकर वस्ति देवै । दोष उपस्थित होनेपर मुखपर ठंडे जलके छींटे के हृदय में स्थित होने पर बिल्वादि पंच मारे । जब तक क्लाति दूर न हो तब तक | मल से सिद्ध की हुई वस्ति देवै । तथा ताडके पंखोंसे हवा करता रहे और रोगीसे | दोषके सिरमें स्थित होने पर नस्यकर्म, धूम प्राणायाम करावे, प्राणायामसे ऊर्ध्वक्षिप्त । प्रयोग, तथा सरसों से मस्तक को आच्छावस्ति नीचे को आजाती है। हाथों को
दन करदेना उत्तम है। गरम कर करके रोगी के पीठ, पसली और उदर पर फेरे । रोगी को ओंधा मुख करके
अत्युष्णवस्तिका फल । .. उसका केश पकड कर हिलावै । सिंहादि । बस्तिरत्युष्णतीक्ष्णाम्लघनोतिस्वोदितस्य- .
वा ॥२१॥ हिंसक जीव, शस्त्र, उल्का और राजपुरुषों । अल्पे दोषे मृदौ कोष्ठे प्रयुक्तोवा पुनः पुनः। का रोगी को भय दिखावै । इन कामों से |
अतियोगत्वमापन्नो भवेत्कुक्षिरुजाकरः २२ ऊर्वगामी वस्ति नीचे को प्रवृत्त होजाती है | विरेचनातियोगेन स तुल्याकृतिसाधनः । इस रीतिसे कि रोगी मरने न पावै हाथ वा
___ अर्थ-बिना स्वेदन कर्म किये अति वस्त्रसे रोगी का गला घोटे । ऐसा करनेसे
उष्ण, अतितीक्ष्ण, अत्यम्ल वा अतिघन प्राण और उदान वायु के रुक जाने के का
वस्ति दने से अथवा अल्प दोष में वा मृदु रण अपानवायु वस्ति को शीघ्रही नीचे को
कोष्ठ में बार बार वस्ति देने से अतियोग खींच लेती है। ___कूठ और सुपारी का कल्क कांजी मिला
होजाता है और ऐसा न होने से कुक्षि में कर पान कराने से वह उष्णता, तीक्ष्णता
वेदना होने लगती है । विरेचन के अतिऔर सरता के कारण वस्ति का अनुलोमन | योग में जो लक्षण
योग में जो लक्षण और चिकित्सा कहे गये करता है।
। हैं, वेही इसमें भी जानने चाहियें। ..
For Private And Personal Use Only