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अष्टांगहृदय |
( ७०६ )
हम्याद सुन्दराम्मादशोफका साश्मकुंडलान् । | चक्षुः पुत्रदो राक्षां यापनार्ना रसायनम् ॥
अर्थ - मोथा, पाठा, गिलोय, अरंड की जड, खरैटी, रास्ना, पुननर्वा, मजीठ, अ. मलतास, खस, त्रायमाणा, बहेडा, हरड, और लघुपंचमूल प्रत्येक एक पल, मैनफल, आठ, इन सबको एक आढक जलमें पकावै चौथाई शेष रहनेपर उतारकर छानले, फिर इस काढेमें दो प्रस्थ दूध मिलाकर फिर पकावै, जब दूध शेष रह जाय तब उतारकर छानले । फिर उसमें दूध से चौथाई जांगल मांसरस तथा घी शहत और सेंधानमक मिलादे । तथा मुलहटी, सौंफ, श्यामा, इन्द्रजौ और रसौत इनको पीसकर मिलादे । इसको ईषदुष्ण अवस्था में प्रयोग करें । यह मांस . जठराग्नि, बल और वीर्यको बढानेवाला है, - तथा वातरक्त, मोह, प्रमेह, अर्श, गुल्म, मल और मूत्रका विबंध, विषमज्वर, विसर्प, व आध्मान, प्रवाहिका, वंक्षण ऊरु, कमर, कूख, मन्या,श्रोत्र और सिरका दर्द, असृग्दर, उन्माद, सूजन, खांसी, अश्मरी और वातकुंडलिका जाते रहते हैं । यह नेत्रों को हतकारी, पुत्रदायक, और राजाओं के कष्टसाध्य रोग में रसायन है |
शुकarata |
मृगाणां लघुबभ्रूणां दशमूलस्य चांभसा । हामिसिगांगेयीकल्कैवतहरः परम् ॥ निरुहोत्यर्थवृष्यश्च महास्नेहसमन्वितः ।
अर्थ-छोटे और बडे दोनों प्रकार के मृगों का मांस और दशमूल इनका काढा करके उसमें हाऊबेर, सौंफ, और नागरमोथा
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भ० ४
पीसकर मिलादे यह वातनाशक परमोत्तम औषध है । तथा इसमें महास्नेह का संयोग किया जाय तो यह अत्यन्त वीर्यवर्द्धक है ।
मयूरादि की कल्पना ।
मयूरं पक्षपितांत्रपादवितुण्ड बार्जितम् ॥ लघुना पञ्चमूलेन पालिकेन समन्धितम् । पक्त्वा क्षीरजले क्षीरशेषम्
सघृतमाक्षिकम् ॥ ४५ ॥ सद्विहारीकणायष्ठीशतावा फलकल्कबत् । बस्तिरीषत्पटुयुतः परमं बलशुक्रक्कृत् १६ ॥ अर्थ- पंख, आंत, पांव, पुरीष, और चोंच दूर करके मोर का मांस तथा लघुचमूल प्रत्येक एक पल इनका काढा करले, चौथ ई शेष रहने पर छानले फिर इसमें दूध मिलाकर पकावे, दूध शेष रहने पर घी शौर शहत मिलादेवै, पीछे इसमें विदारीकंद, पीपल, मुलहटी, सोंफ, मेनफल तथा थोडा सा सेंधानमक इन सबको पीसकर मिलांदेवै । यह वस्ति अत्यन्त बल और वो बढानेवाली है ।
ततिर आदि फी कल्पना कल्पनेयं पृथक् कार्या तित्तिरिप्रभृतिष्वपि विष्किरेषु समस्मेषु प्रतुद्म सहेषु च ४७ ॥ जलचारिषु तद्वच्च मत्स्येषु क्षीरवर्जिता ।
अर्थ - तीतर आदि पक्षी, तथा सब प्रकार के विष्किर, प्रतुद, प्रसह और जलचर जीवों के मांसकी ऊपर लिखी हुई रीति से वस्ति की कल्पना करे | परन्तु मछलियों की मांसकी वस्ति में दूध नहीं डालना चाहिये क्योंकि दूध और मछली विरुद्ध हैं । गोधादि की वस्ति ।
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गोधान कुलमार्जारशल्यकौ टुरम पलम् ॥ पृथक् दशपलं क्षीरे पंचमूकं च साधयेत् ।