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अ. ३
कल्पस्थान भाषाटीकासमेत ।
तत्पश्चात् पाचनीय औषधियों द्वारा रोगी के / शीघ्र निकलजाते हैं और फिर वह औषध इन बचे हुए दोषको पचाकर कायाग्नि और बल | धातुओं को निकालती है । को धीरे धीरे बढाने का प्रयत्न करे । विरेचनाति योगमें चिकित्सा । - अतिवमित का उपाय। तशतियोगे मधुरैः शेषमौषधमुल्लिखेत् ॥ पवनेनाऽतिवमतो हदय यस्य पीडयते।
योज्योऽतिवमने रेको विरेके वमनं मृदु ॥ तस्मै स्निग्धाम्ललवणम्
परिषेकावगाहाथैः सुशीतैः स्लभयच्च तम् दयात्पित्तकफेऽन्यथा ॥ २०॥ अर्थ-विरेचन के अतियोगं में वमनका' अर्थ-अत्यन्त वमन होने के कारण रक मधुर औषधों द्वाग पी हुई शेष औषध वायुद्वारा जिस रोगी का हृदय पीडित हो का वमन कराके निकाल डाले । वमन के उसे स्निग्ध, अम्ल और नमकीन पध्यदेवै ।। अतियोगमें विरेचन और विरेचन के अतितथा पित्त और कफ कुपित हों तो इससे वि- योगमें मृदु वमन दैना चाहिये । शीतल परीत मधुर शीतादि का प्रयोग करै । | परिषेक और शीतल अवगाहादि द्वारा विरे.
वातनाशक स्वेदादि का प्रयोग। चनको रोक देना चाहिये । पतिौषधस्य वेगानां निग्रहेण कफेन वा।।
| विरेकातियोगनाशक औषध । रद्धोति वा विशुद्धस्य गृह्णात्यंगानि
| अंजनं चंदनाशीरमज्जासृक्शर्करोदकमू २५
मास्तः ॥ २१॥ लाजचूणैः पिवेन्मंथमतियोगहरं परम् । स्तंभवेपथुनिस्तोदसादोद्वेष्टार्तिभेदनैः। अर्थ-अंजन, चंदन, खसकी मज्जा, तत्र वातहरं सर्व स्नेहस्वेदादि शस्यते २२ मजीठ, खांडका शर्बत और खीलका चूर्ण ___ अर्थ-पान की हुई औषधक वेग रोकने | ये विरेचन के अतियोग की श्रेष्ठ औषधहै ।
से, अथवा कफसे अथवा अति विशोधन से वमनातियोगकी चिकित्सा। यायु कुपित और रुद्ध होकर स्तब्धता,वेपथु,
| वमनस्याऽतियोगे तु शीतांबुपरिचितः ।
पिबेत्फलरसैमथं सघृतक्षौद्रशर्करम् ॥ निस्तोद, अंगग्लानि, उद्वेष्टन, वेदना और
सोद्गारायां भृशं छामूर्वायां धान्यमुस्तयोः भेदन उत्पन्न कर देती है इसमें सब प्रकार समधूकांजनं चूर्ण लेहयन्गधुसंयुतम् ।। के वातनाशक स्नेहन और स्वेदन देना ___ अर्थ-वमनके अतियोग में रोगी को ठंडे उसम है।
जलसे परिषेक कराकर घी, शहत और शविरेचनादियोग में कर्तव्य । करा से युक्त मंथको दााउमादि फलों के रसके बहुतक्षिणं क्षुधार्तस्य मृदुकोष्ठस्य भेषजमू साथ पान करोव। जो वमनके साथ डकारों के हृत्वाऽऽशु विटूपित्तफफान् धातूनास्राव
वेगकी अधिकता हो तो मूर्वा, धनियां, मोथा,
येत् द्रवान् २३ अर्थ-क्षुधा से पीडित मृदु कोष्ठ बाले
मुलहटी और रसौत का चूर्ण शहतके साथ
चटावै । रोगी को प्रमाण से अधिक तीक्ष्ण विरेचन
जिहवाकेभीतरघुसजानेमेचिकित्सा। दिया जाय तो उससे विष्टा, पित्त और कफ बमनेऽतःप्रविष्टायां जिह्वायां कवल ग्रहाः २८
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