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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ०२ कल्पस्थान भाषाटीकासमेत । (६९३) साथ विरेचन के लिये देवै । यह योग सब | चार बर्षसे बारह वर्ष की अवस्था तक के बाऋतुओं में रूक्ष पुरुषोंको और अपि शब्दसे | लक को अमलतास का गूदा दाखके रसके स्निग्धों को भी उपयोगी होता है । साथ देनेसे सुखपूर्वक विरेचन होता है। ज्वरमें राजक्षका प्रयोग । अमलतासका काढा। ज्वर हृद्रोगवातासृगुदावर्तादिरोगिषु । चतुरंगुलमज्ज्ञो वा कषायं पाययद्धिमम् । राजवृक्षोऽधिकं पथ्यो मृदुर्मधुरशीतलः॥ दधिमडसुरामंडधात्रीफलरसैः पृथकू ॥ अर्थ-ज्वर, हृद्रोग, वातरक्त और उदाव- सौवीरकेण वा युक्तं कल्केन त्रैवृतेन वा। ादि रोगोंमें अमलतास का विरेचन अन्य । अर्थ-अमलतास के गूदेका शीत कषाय विरेचनों की अपेक्षा गुणकारक होता है । | प्रस्तुत करके उसको दही के तोड, सुरामंड, यह मृद मधुर और शीतल होता है। आमले के रस, सौवीर वा निसोथ के कल्क अन्य प्रयोग । के साथ विरेचनार्थ पान करावे । घाले वृद्ध क्षते क्षीणे सुकुमारे च मानवे। अन्य प्रयोग। योज्यो मृद्वनपायित्वाद्विशेषाच्चतुरंगुलः ॥ दन्तीकषाये तन्मज्ञो गुडं जीर्ण च निक्षिपेत् .. अर्थ-बालक, वृद्ध, क्षय, क्षीण और सु. तमरिष्टं स्थितंमासं पाययेत् पक्षमेव वा। ' अर्थ-दंती के काथमें अमलतास का गूदा कुमार व्यक्तियों के लिये अमलतास देकर वि. रेचन कराव क्योंकि यह मृदु और निरापद और पुराना गुड मिलाकर किसी पात्रमें एक . विरेचन है। महिने वा एक पक्ष तक रहने दे । फिर मां त्रानुसार इस अरिष्ट का पान करावै । __ अमलतासका ग्रहणादि । अमलतासका अन्यप्रयोग । फलकाले परिणतं फलं तस्य समाहरेत् । तेषां गुणवतां भारं सिकतासु विनिक्षिपेत् ॥ त्वचं तिल्वकमूलस्य त्यक्त्वाभ्यंतरवल्कलम् सप्तरात्रात्समुधृत्य शोषयेश्चातपे ततः। विशोष्य चूर्णयित्वा च द्वौ भागौ गालयेत्ततः रोधस्यव कषायेण तृतीय तेम भावयेत् ॥ ततो मज्जानमुधृत्य शुचौ पात्रे निधापयेत् कषाये दशमूलस्य तं भाग भावितं पुनः। अर्थ-फलके कालमें अमलतास के अच्छी शुष्कं चूर्ण पुनः कृत्वा ततः पाणितलं पिबेत् । तरह पके हुए सौ पल फल लाकर बालूमें गा. | मस्तुमूत्रसुरामंडकोलधात्रीफलांवभिः। ढदे । सातदिन पीछे निकालकर धूपमें सुखा- | अर्थ-लोधकी जड की बाहर वाली छाले । फिर इनका गूदा निकाल कर एक शुद्ध ल को दूर करके भीतरकी छाल को सुखा पात्र में रखदे। कर चूर्ण करले फिर इसे तीन भागोंमें बांट अमलतासके प्रयोगकी विधि । कर इनमें से दो भाग लेकर लोधके ही काथ द्राक्षारसेन तं दद्याद्दाहोदावर्तपीडिते।। में आलोडित करके वस्त्रमें छान लेवै । इस चतुर्षर्षे सुखं वाले यावद्वादशवार्षिके॥ | काढेको बचे हुए मेधके एक भागकी भावना अर्थ-उदावर्त से पीडित रोगीको तथा | देवे । फिर इसको दशमूल के काटेकी भावना For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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