________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
कल्पस्थान भाषाटीकासमेत ।
( ६९४ )
देकर सुखाले इस चूर्णको दहीके तोड, गोमूत्र, सुरामंड, बेरका रस, वा आमले का रस इनमें से किसीके साथ पान करावे | इसकी मात्रा दो तोले दी जाती है । लोधका अवलेह |
सिल्कस्य कषायेण कल्केन च सशर्करः ॥ सघृतः साधितो लेहः सच श्रेष्ठ विरेचनम् ।
अर्थ - लोध का कल्क और काढा शर्करा और वृत मिलाकर पका जब यह ल्हेई के समान गाढा होजाय, तब उतार कर चाटे, यह बडा उत्तम विरेचन है । थूहर के दूधका निषेध | - सुधा भिनत्ति दोराणां महांतमपि संचयम् ॥ आश्वेत्र कष्टविभ्रशान्नैव तां कल्पयेदतः । कोटेले वाले स्थविरे दीर्घरोगिण || अर्थ- - थूहर दोषों के बडे संचय को भी शीघ्र भेद डालता है, तथापि कोष्टको शीघ्र विभ्रंश करने के कारण मृदु कोष्ठवाले को, निर्वलको, बालक को, वृद्ध को और दीर्घ रोगीको थूहर का दूध न देना चाहिये । थूहरका प्रयोग |
कल्ल्या गुल्मोदरगरत्वग्रोगमधुमेहिषु । पांडी दूषविषे शोफे दोषविभ्रांतचेतसि ॥ सा श्रेष्ठ कंटकैस्तीक्ष्णैर्बहुभिश्च समाचिता ।
अर्थ- गुल्म रोग, उदररोग, विषरोग, त्वचारोग, मधुमेह, पांडुरोग, दूषी विष, सूजन और चित्तकी बिभ्रांति इनमें थूहर के दूधका प्रयोग करना चाहिये, जो थूहर वहुत से पैने कांटों से युक्त होता है, वह श्रेष्ठ होता है ।
सुधा गुटका । द्विवर्षा वा त्रिवर्षी या शिशिरांते विशेषतः ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तां पाटयित्वा शस्त्रेण क्षीरमुद्धारयेत्ततः । बिल्वादीनां वृहत्योर्वा क्वाथेन सममेकशः । मिश्रयित्वा सुधाक्षीरं ततोऽगारेषु शोषयेत् पिबेत्कृत्वा तु गुटिकां मस्तुमूत्रसुरादिभिः ।
अर्थ-दो बा तीन वर्ष के पुराने थूहर को शिशिर ऋतुके अंतमें चीरकर दूध निकाल ले | पीछे वेलगिरी के काढ़े और दोनों कटेरियों के काढ़े में अलग अलग मिलाकर अग्नि पर सुखाले और गोलियां वना लेवे । इन गोलियों को दही के तोड गोमूत्र वा मदिरा के साथ पान करै ।
अ ०२
घृत के साथ निसोथपान । त्रिवृतादन्निववरां स्वर्णक्षीरीं ससातलाम् । सप्ताहं स्नुपयः पीतान् रसेनाज्येन वा पिवेत्
अर्थ - तृवृतादि नौ द्रव्य ( ऋवृत, श्यामा, अमलतास, निसोध, थूहर, शंखनी, सातला, दंती, द्रवती), तथा त्रिफला, स्व
क्षीरी, सातला, इनको सातदिन तक सें. हुंड के दूध की भावना देकर मांसरस वा घृत के साथ पान करे ।
व्योषादि सेवन |
तद्वयोषोत्तमाकुंभ निकुंभादीन् गुड़ांबुना । अर्थ - ऊपर लिखी रीति के अनुसार त्रिकुटा, त्रिफला, निसोथ और दंती आदि विरेचक औषधों को गुडके शर्वत के साथ पीना चाहिये ।
कफरोगों में चिकित्सा 1
नातिशुष्कं फलं ग्राह्यं शंखिन्या निस्तुषीकृतम् सप्तलायास्तथा मूलं ते तु तक्ष्णिविकाषिणी मामयोरगरश्वयथवादिषु कल्पयेत् ॥
For Private And Personal Use Only
अर्थ - शंखनी का ऐसा फल लावे जो
+