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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टांगहृदप । म.२६ स्तमाक्षेपकशूलात कोणे हे तु शीतलैः । वातरक्त में लेप । - अर्थ-मधुरगणोक्त द्रव्यों के साथ घृत, | सरागे सरुजे दाहे रक्तं कृत्वाप्रलेपयेत् । तेल, वसा, मज्जा इन चारों प्रकार के स्नेहों | प्रपडिरीकमंजिष्ठादारींमधुकचंदनैः । को पकाकर स्तंभ, आक्षेप और शुलयुक्त ससितोपलकासेक्षुमसूरैरकसक्तुभिः। वातरक्त में कुछ गरम करके परिषेक करना लेपो रुग्दाहवीसर्परागशोफनिबर्हणः ॥ ___ अर्थ-गंग, वेदना और दाहयुक्त वातरक्त चाहिये और जो दाह हो तो ठंडा ही लगादेवे | में रक्त निकालकर प्रपौंडरीक, मजीठ दारुअन्य प्रयोग । तद्वन्द्व्याविकच्छागैः क्षीरैस्तैलविमिश्रितैः। हल्दी, मुलहटी, चन्दन, मिश्री, कांस, ईखे, अर्थ-गौ, भेड वा वकरी का दूध तेलमें । मसूर, और एरका वीजका चूर्ण इनका लेप मिलाकर पहिले की तरह स्तंभ, आक्षेप करनेसे बेदना, दाह, विसर्प, ललाई और भौर शूलमें कुछ गरम करके और दाह में | सूजन जाती रहती है । वातरक्त में उपनाहन । ठंडेका परिषेक करें। वातघ्नैः साधितः स्निग्धाकृशरो मुद्पायसः। अन्य प्रयोग । तिलसर्षपपिंडैश्च शुलघ्नमुपनाहनम् ॥ निकाथैर्जीवनीयानां पंचमूलस्य वा लघोः। अर्थ-वातनाशक औषधों से सिद्ध किया अर्थ-जीवनीय गणोक्त द्रव्यों का अथवा हुआ स्नेहयुक्त खिचडी, वा मूंग का पदार्थ लघुपंचमूल वा ईषदुष्ण क्वाथ पूर्वोक्त स्तंभादि खीर, तिल वा सिरसों का कल्क इनका रोगों पर सेवन करे, और दाह हो तो ठंडा लेप करने से शूल जाता रहताहै । करके परिषेक करै । अन्य उपनाह । परिषेक की औषध । औदका प्रसहानूपवसेवाराः सुसंस्कृताः। द्राक्षेक्षुरसमद्यानि दधिमस्त्वम्लकांजिकम् । जीवनीयोषधस्नेहयुक्ताः स्युरुपनाहने ॥ । सेकार्थ तंडुलक्षौद्रं शर्करामश्च शस्यते । । स्तंभतोदरुगायामशोफांगग्रहनाशनाः। अर्थ-जो वातरक में दाह हो ते द्राक्षा | जीवनीयौषधैःसिद्धाःसपयस्तारसाऽपिवा रस, ईखका रस, मद्य, दहीका सोड, खट्टी अर्थऔदक, प्रसह और आनूप जीबों कांजी, तंडुलोदक, मधमिश्रित जल और | का अस्थिरहित मांस से बनाया हुआ वेसखांडका जल परिषेक के लिये काममें लावै । वार जीवनीयगणोक्त द्रव्यों से सिद्ध किया दाहनाशक उपाय । हुआ स्नेहयुक्त और सम्यक संस्कार किया प्रियाः प्रियंवदा नार्यश्चंदनाकरस्तनाः । हुआ उपनाहन काम में लाये, अथवा उक्त स्पर्शशीताःसुखस्पर्शानंति दाहं रुजंक्लमम्। जीवों की चर्बी जीवनीय गणोक्त औषधों से अर्थ-चन्दन से भीगे हुए हाथ और सिद्ध की हुई दूधमें मिलाकर उपनाहन के स्तनवाली, छूनेमें शीतल और सुखदायिनी | काम में लावै । इन प्रयोगों से स्तंभ, तोद प्रियवादिनी, प्रिय कामिनी गणोंके आलिंगन | बेदना, आयाम, सूजन और अंगग्रह जाते. से दाह, वेदना और क्वांति जाते रहते हैं। । रहते हैं। . For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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