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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६६४] अष्टांगहृदय । म० २. पीपलामूल, सहजना, इन सब मसालों को | खाय, ऊपर से कांजी पीवै । अथवा पतले डालकर तक्रके साथ पेया तयार करके उसमें | तक्रमें पंचकोल और नमक मिलाकर अनुसनीखार मिलाकर रोगी को पान करावै। पान करे। कृमिरोग में शिरीषादि रस। अन्य प्रयोग। रस शिरीषाकिणिहिपारिभद्रकबुकातू। नपिार्कवानर्गुडीपल्लवेष्वप्यय विधिः। पसाशवीजपत्तरपूतिकाद्वा पृथकू पिवेत ॥ विडंगचूणमित्रैर्वा पिष्टैर्भक्ष्यान् प्रकल्पयेत् । समौद्र सुरसादीन्वा लिह्यात्क्षौद्रयुतान् । ___अर्थ -कदंव, भांगरा, संभालू के पत्ते, पृथए। पर्ववत शालीचांवलों के चनमें मिलाकर पूरी अर्थ-सिरस, किणही, [ गिरिष.र्णी ] | वनावै, अथवा वायविडंग के चूर्ण में शाली नीन, केमु आ, ढाक के बीज, लालचंदन, चांवलों का चुन मिलाकर पूरी वना कर और कंजा इनमें से किसीके रसमें शहत सेवन करै । मिलाकर अथवा सुरसादि गणोक्त द्रव्यों के तेल का प्रयोग । रममें शहत मिलाकर सेवन करै । विडंगतंडुलैयुक्तमोशैरातपस्थितम् ॥ . अन्य अवलेह । दिनमारुष्कर तैलं पाने वस्तौ च योजयेत् । शतकृत्वोश्वविट्रचूर्णविडंगकाथभावितम् ॥ सुराहसरलस्नेहं पृथगेवं प्रकल्पयेत् । ३२ । कृमिमान्मधुना लिह्याद्भावितं वा वरारसैः । अर्थ-भिलावे के तेलमें आधेभाग वाय- अर्थ-घोडेकी लीदको वायविडंग के विडंग के बीजों का चूर्ण मिलाकर एक दि. काढे में वा त्रिफला के रसमें बहुत बार भा. न धूपमें रवखे, फिर इस तेलको पीने वा वना देकर शहत मिलाकर च टनेसे कृमि वस्तिकर्म में प्रयोग करें । इसी तरह से दे. रोग जाता रहता है। वदारु और सरलकाष्ठ के तेलमें भी बिडंग नस्यार्थ चर्ण। के बीजों का चूर्ण मिलाकर पान वा वस्ति शिरोगतेषु कृभिषु चूर्ण प्रधमनं च तत् ॥ | कर्म में योजित करै । ___ अर्थ-शिरोगत कृमिरोग में शिरोरोग। प्रतिषेध में कहे हुए चूर्ण नल द्वारा नासि पुरीषज कृमिमें चिकित्सा । का में फूंकने चाहिये । पुरीषजेषु सुतरां दद्याद्वस्तिविरेचने । __ अर्थ--विष्टा में उत्पन्न होने वाले कीडों अन्य प्रयोग। में वस्तिकर्म और विशेषरूप से विरेचन देआखुकर्णीकिसलयैः सुपिष्टैः पिष्टमिश्रितैः। पक्त्वा पूपलिकांखारेद्धान्याम्ल च पिवेदन ना चाहिये । रूपं वकोललवणमसांद्रं तक्रमेव वा। 1 कफजकृमिरोग में कर्तव्य । अर्थ- मूषककर्णी के पत्तों को महीन | शिरोविरेकं वमनं शमनं कफजन्मसु॥३॥ पीसकर शालांचांवलों के चूनमें मिलाकर पि. अर्थ-कफजन्य कृमिरोग में नस्य,वमन ट्ठी बना लेवे। इस पिट्ठी की पूरी बनाकर और शमनक्रिया करना चाहिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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