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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१९४] अष्टमिट्टदव। ब. १९ mms विडंगतुवरास्थ्यरुष्करात्रिफलाभिः । । साथ गोलियां बनाकर सेवन करने से कुछ घटका गुडांशलप्ताः . . समस्तकष्टानि नाशयत्यभ्यस्ताः॥४४॥। राग नष्ट होजाता है। अर्थ-वाकुची, चीता, हलदी, बायबि विडंगादि प्रयोग। विडंगाद्रिजतु क्षौद्रं सर्पिष्मल्खादिरं रजः। खंग, तुबर, भिलावे की गुठली, और त्रिफला किटिभश्वित्रदद्रघ्नं खाइन्मितहिताशनः .. ये सब समान भाग लेकर गुडके साथ गो ___ अर्थ-वायबिडंग, शिलाजीत, शहत,घी 'लियां बनालेवे । इनका नित्य प्रति सेवन खैरकी लकडी इनका अवलेह बनाकर मिता:करने से सब प्रकार के कुष्ठरोग जाते रहतेहैं । हारी और पथ्याहारी मनुष्य सेवन करे तो ___ अन्य प्रयोग। किटिम, श्वित्र और दद्रु नष्ट होजाते हैं । विडंगभल्लातकवाकुचीनां कुंष्ठ पर सितादि अश्लेह । सदीपिवाराहिहरतिकानाम् । 'सलांगलीकृष्णतिलापकुल्या सितालकृमिशानि धात्र्ययोमलपिप्पलीः । गुडेन पिंडी विनिहति कुष्ठम् ॥ ४५ ॥ लिहानः सर्वष्ठानि जथातगुरुण्यपि अर्थ-वायविडंग, भिलावा, वाकुची, । अर्थ-खांड, तेल, वायविडंग, आमला चीता, वारुणी कंद, हरड, कलहारी, काले और पीपल इन द्रव्यों का अवलेह सेवन तिल, पीपल इनके चूर्ण को गुड में मिलाकर करने से सब प्रकार के कष्टसाध्य कुष्ठरोग गोली बनाकर सेवन करने से कुष्ठरोग जाता दूर होजाते हैं। कुष्ट पर चूर्ण । मुस्तं व्योषं त्रिफला मंजिष्ठादारुण्चमूले के शशांकलेखा अवलेह ।। सप्तच्छदानिवत्वसविशाला चित्राको मूर्वा शशांकलेखा सविडममूला चूर्ण.तर्पणभानधभिः संयोजितं खमध्वंशम् सपिप्पुल्लीका सहुताशमूला नित्यं कुष्ठनिबईणमेतत्प्रायोगेकं खादन् सायोभलासामलका सतैला | श्वयधुंसपांडुरोगश्वित्रंग्रहप्रदोषमासि कुष्ठानि कठ्ठाणि निहंति लोढा ॥ ४६॥ वर्मभंगदरपिंडकाकडूकोठापचीहति ॥ : अर्थ-बाकुची, वायविडंग की जड,पी- ' अर्थ-मोथा, त्रिकुटा, त्रिफला, गजीठ, पलामूल, चीते की जड, लोहे का मैल और दारुहलदी, दशमूल, सातला, नीमकी छाल, आमला इन सब द्रव्यों को तेल के साथ इन्द्रायण, चीता, मूर्वा, ये सब समान भाग चाटने से कुष्ठ रोग जाते रहते हैं। सत्त नौ भाग इसको शहत में मिलाकर - पथ्यादि गुटिका। प्रतिदिन सेवन करने से कुष्ठ, सूजन, पांडु पथ्यातिलगुडैः पिंडी कुष्ठं सारुष्करैर्जवेत्। रोग श्वित्र, ग्रहणीदोष, बवासीर, वर्मरोग, गुहारुष्करजंतुघ्नसोमराजीकृताऽथवा भगंदर, पिडिका, कंडू, कोठ ( पित्ती) ...अर्थमहरड, तिल, और भिलावा इनके और अपची ये सब रोग जाते रहते हैं। चूर्ण की गुडके साथ अथवा भिलावा, वाय- अन्य रखापन प्रयोग। विडंग और दावची इनके चूर्ण की गुड के '| रसायनप्रयोगेण तुवरायानि शीलयेत् । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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