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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म.१९ चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । (६५३) सातला, इनके काढे को सिद्ध करके घी कुष्ठ, अर्श, प्रमेह, सूजन, पांडुरोग, भजीर्ण और शहत के साथ खाने से कुष्ठरोग नष्ट और कृमिरोग नष्ट होजाता है । होजाता है। अन्य प्रयोग। अन्य प्रयोग। लाक्षादतीमधुरसवरादीपिपाठाषिडंग प्रत्यक्पुष्पीत्रिकटुरजनीसप्तपर्णाटरुषम् । दाखिदिरनियानां त्वक् काथः कुष्ठसूदनः। रक्तानि सुरतरुकृतं पंचमूल्यौ च चूर्णे . अर्थ-दारुहलदी, खदिर काष्ट और पीत्वामासं जयति हितभुग्गव्यमूत्रेण कुष्ठम् नीमकी छाल, इनका काढा कुष्ठनाशक है। अर्थ-लाख, दंती, ईखकी जड, त्रिफला अन्य प्रयोग। चीता, पाठा, वायविडंग, प्रत्यक निशोत्तमानिवपटोलमूल पुष्पी, त्रिकुटा, हलदी, सातला, अडूसा, तिक्तावचालोहितयष्टिकाभिः ।। मजीठ, नीमकी छाल, देवदारू, और दशकृतः कषायः कफपित्तकुष्ठं सुसेवितो धर्म इवोच्छिनात्त ॥ ३८॥ मूल, इनका चूर्ण एक महिने तक गोमूत्रके पभिरेव च शृतं घृतमुख्यं साथ सेवन करने से कुष्ठ जाता रहता है । भेषजैर्जयति मारुतकुष्ठम् । कृकुष्ठ की चिकित्सा। कल्पयेत्खदिरनिंबगुडूची निशाकणानागरवेल्लतीवर देवदारुरजनीः पृथगेवम् ॥ ३९॥ सवन्हिताप्यं क्रमशो विवर्धितम् । अर्थ-हलदी, त्रिफला, नीम, पर्वलकी गवांबु पीतं यटकीकृतं तथा जड, कुटकी, वच, मजीठ, इनका काढा | निहंति कुष्ठानि सुदारुणान्यपि ॥४२॥ . सेवन करने से कफपित्तज कुष्ठरोग जाता ____ अर्थ-हलदी, पीपल, सोंठ, वायविडंग रहता है, जैसे अच्छी तरह धर्मके सेवन से तूर, चीता, और सौना माखी इनसे एक पाप नष्ट एजाता है । इन्ही द्रव्यों के काढे | एक माग बढाकर चूर्ण बनाकर गोमूत्र के के साथ पकायाहुआ घी वातज कष्ठको दर साथ सेवन करने से भयंकर कुष्ठ जाता करदेताहै ॥ इसी तरह खैरकी लकडी, नी रहता है । मकी छाल, गिलोय, देवदारु और हलदी | कोढ पर रसायन । त्रिकटूत्तमातिलारुइनका काढाभी कुष्ठको दूर करता है ॥ कराज्यमाक्षिकसितोपला विहिता अन्य प्रयोग। गुलिका रसायनं स्यात् पाठादाविान्हघुणेष्टाकटुकाभि कुष्ठजिच वृथा च सप्तसमा ॥४३॥ द् युक्तं शक्रयश्चोष्णजलं च । । अर्थ-त्रिकुटा, त्रिफला, तिल, भिलावा कुष्ठी परिवा मासमरुक् स्याद्गुदकीली घी, मधु और चीनी इन सब द्रव्यों को मेको शोकोपांडुरजीर्णी कृमिमांश्च ॥४०॥ समान भाग लेकर गोलियां बना लेवे ॥ अथ-पाठा, दारूहलदी, चीता, अतीस | ये गोली रसायन,कुष्ठनाशक और वृष्यहै ।। और कुटकी इनके साथ वा इन्द्रजौ के साथ . चन्द्रशकला गुटिका। गोमत्र वा गरमजल एक महिनेतक पीनेसे । चंद्रशकलानिरजनी For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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