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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ. १६ चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । (६३७ ) सर्वान्प्रशमयत्याशु विकारान्मृत्तिकाकृतान् | प्रकार की मिट्टी से विकार उत्पन्न हुआ - अर्थ-त्रिकुटा, बेलागरी, हलदी, दारु- है. फिर तदनंतर वातादि दोषका विचार हलदी, त्रिफला, दोनों सांठ, मोथा, लोह- करके मिट्टी खाने से उत्पन हुए पांडुरोग के चूर्ण, पाठा, बायविडंग, देवदारू, वृश्चिका- | दर करने का उपाय करे ।। ली और भाडंगी ये सब घी से चौथाई, कामला में पित्तनाशक औषध । घी की बराबर दूध और चौगुना जल डाल | कामलायां तु पित्तघ्नं पांडुरोगाविरोधि यत् कर पाक की रीति के अनुसार घी को अर्थ-कामला रोग में यह औषध देनी पकाकर सेवन करे, इस घृत से मृत्तिका चाहिये जो पित्तनाशक हो और प्रांडरोग के द्वारा उत्पन्न हुए संपूर्ण विकार प्रशमित हो । अविरोधी हो । जाते हैं। कामला पर घृत । केसरादि घृत । पथ्याशतरसे पथ्यावृतार्धशतकलिकतः ॥ तद्वत्केसरयष्टयावपिप्पलीक्षीरशाइबलैः। प्रस्थःसिद्धो घृता गुल्मकामलापांडुरोगनुत् । ___ अर्थ-केसर, मुलहटी, पीपल, दूध और अर्थ-सौ हरड के काथ में ५० हरड के हरीदूब इन से पकाया हुआ घी पूर्ववत गण- डंठलों का कल्क मिला कर एक प्रस्थ घी कारी होता है। पकौव । इस से गुलम, कामला और पांडु. अन्य उपाय । | रोग दूर हो जाते हैं। मृद्धेषणाय तल्लोल्ये वितरेद्भावितां मृदम् ॥ अन्य ऑषध । वेल्लाग्निनिवप्रसवैः पाठया मूर्वयाऽथवा। आरग्वधं रसेनेक्षोर्वि दक्षर्यामलकस्य वा ।। ___ अर्थ-मात्तिका के खाने की अभिलाषाही सत्यूपणं विल्वमात्र पायये कामलापहम् । हो तो बायबिडंग, चीता और नीम, इनके / अर्थ-अमलतास,ईख,विदारीकंद, व आमला पत्ते, पाठा अथवा मूर्वा इनके काथ की | इन में से किसी एक के रस के साथ एक भावना दी हुई मिट्टी खानेको दे । पल त्रिकुटा का चूर्ग मिला कर सेवन करने दोपानुसार औषध का प्रयोग से कामला रोग नष्ट हो जाता हैं। .. मृद्भेदभिन्नदोषानुगमाद्योज्यं च भेषजम् ॥ अन्य चूर्ण । अर्थ-मृतिका के भेद के अनुसार वाता- पिन्निकुंभकल्कं वा द्विगुण शीतवारिणा ॥ दि दोषों की विवेचना करके औषध का कुंभस्य चूर्ण सक्षौद्रं वैफलेन रसेन वा । प्रयोग करना चाहिये । अर्थात् कषाय मृ ___अर्थ-दंती का चूर्ण दो पल ठंडे जलके तिका के खाने से वायु, क्षारयुक्त मृतिका साथ पीवै । अथवा निसौथ का चूर्ण शहत के सेवन से पित्त और मधुर मृतिका के मिलाकर त्रिफला के क्वाथके साथ पीवे । अन्य प्रयोग। सेवन से कफ प्रकुपित होता है । इसलिये | त्रिफलाया गुडूच्या वादाा निंबस्यप्रथा यह विचार करना चाहिये कि किस घा रसम् ॥ ४३ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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