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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टांगहृदये। अ.१६ प्रत्येक एक पल, त्रिजातक ( दालचीनी, अर्थ- पांडु और कामला रोगों के दूर इलायची; और तेजपात ) यथायोग्य और करने के लिये लघु पंचमूल का काथ तथा मधु तीनै पल मिलाकर दो २ तोले की | दाख और आमले का रस खाने पीने में गोलियां बनालेयै । इसका अनुपान दाडिम हित है । का काढा, दूध, पक्षियों का मांसरस, जल पांडुरोग की सामान्य चिकित्सा । मुरा और आसव है, ये गोलियां भोजन | " इति सामान्यतः । करनेसे पहिले वा भोजन करने से पीछे खाय। प्रोक्तं पांडुरोगभिषग्जितम् । इन गोलियों का सेवन करने से पांडुरोग, विकल्प्य योज्यं विदुषा पृथग्दोषवलं प्रति ॥ कुष्ठ,ज्वर, प्लीहा, तमकश्वास, अर्श,भगंदर, अर्थ-~इस तरह पांडुरोगकी सामान्य हृद्रोग, मूत्ररोग, शुक्रकी दुर्गंधि, अग्निदोष, चिकित्सा कही गईहै । विद्वान् वैद्यको उचिंशोष,गररोग, उदररोग, खांसी, प्रदर,रक्त तहै कि दोष और बलके अनुसार इन औपित्त, सूजन, गुल्म, कंठरोग प्रमेह, वर्म, | षधों की योजना करे । और भ्रम जाते रहते हैं, ये गोलियां संपूर्ण दोषानुसार चिकित्सा। स्नेहप्रायं पवनजे तिक्तशतिं तु पैत्तिके। दोषों को हरनेवाली और कल्याणकारक हैं, श्लैष्मिके कटरूक्षोष्णं बिमिश्रं सान्निपातिके द्राक्षादि अवलेह । ___ अर्थ-वातजपांडुरोग में स्नेहाधिक्य औ. द्राक्षाप्रस्थ कणाप्रस्थं शर्करार्धतुलां तथा ॥ | पध, पैत्तिक में तिक्तरसान्वित, श्लैष्मिक में द्विपलं मधुकं शुठीत्वक्क्षारी च विचूर्णितम् | कट, रूक्ष और उष्ण तथा सान्निपातिक में धात्रीफलरसे द्रोणे तत्क्षिप्त्वा लेहवत्पचेत् . मिली हुई चिकित्सा करे । शीतान्मधुप्रस्थयुताद् लिह्यात्पाणितलं ततः हलीमकं पांडुरोगं कामलां च नियच्छति ॥ अन्यविधि। __ अर्थ-दाख एक प्रस्थ,पीपल एक प्रस्थ, मृदं निर्यातयेत्कायात्तीक्ष्णैः संशोधनैः पुरः। शर्करा आधी तुला, मुलहटी, सौंठ, बंशलो- बलाधानानि सीपि । चन प्रत्येक दो पल, इनको पीसकर आमले शुद्धे कोष्ठे तु योजयेत् ॥ ३५ ॥ के एक द्रोण रस में डालकर व्हेईकी तरह ___अर्थ-जो पांडुरोग मृतिका के खाने से पकावै । जब ठंडा हो जाय तब इस में एक होता है उस में तीक्ष्ण विरेचन देकर प्रथम दे से मृत्तिका को निकाल डालै । फिर प्रस्थ शहत मिलाकर प्रति दिन एक तोले चाटे इससे हलीमक पांडु रोग और काम- कोष्ठ शुद्ध होने पर बलकारक औषपों का प्रयोग करें। ला जाते रहते हैं। ___ मृतिका के पांडुरोग में उपाय । - अन्य प्रयोग । व्योपविल्यद्विर जनात्रिफलाद्वियुनर्नवम् । कनीयं पंचमूलांबु शस्यते पानभोजने। मुस्तान्ययोरजः पाठा विगं देवदारु च ॥ पांडूनां कामलार्तानां मृद्धीकामलकाद्रसः॥ वृश्चिकाली च भार्गीच सक्षीरैस्तैःशृतं घृतम् For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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