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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० १६ चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । [६३५ ] तिल सब समान भाग और पीपल दोभाग | विशेषाद्धंत्यपस्मारं कामलां गुदंजानि च । इनकी गोली बनाकर सेवन करने से पांड। अर्थ-सोनामाखी, शिलाजीत, रूपारोग जाता रहता है। माखी और मंडूर प्रत्येक पांच पांच पल, अन्य गुटिका। चीता, त्रिफला, त्रिकुटा, बायबिडंग, प्रत्येक ताप्यं दाास्त्वचं चव्यं ग्रधिकं देवदारु च ॥ एक पल, शर्करा आठपल, इन सबका चूर्ण व्योषादि नवकं चैतच्चूर्णयेद् द्विगुणं ततः। बनाकर शहत में सानकर सेवन करे तो महरं चांजननिभं सर्वतोऽटगुणेऽथ तत् ॥ पृथग्विपके गोमूत्रे वटकीकरणक्षमे। पांडुरोग, विषरोग, खांसी, यक्ष्मा, प्रक्षिप्य वटकान्कुर्यात्तान्खादेत्तभोजनः ॥ विषमज्वर, कुष्ठ, अजीर्ण, प्रमेह, शोफ एते मंडूरबटकाः प्राणदाः पांडुरोगिणाम् । । श्वास, अरुचि, तथा विशेषः करके अपकुष्टान्यजरकं शोकमूरुस्तंभमरोवकम् ॥ असि कामलां मेहान् प्लीहान् शमयति च स्मार, कामला और अर्श दूर होजाते हैं। ___ अर्थ-सोनामाखी, दारुहलदीकी छाल. कौटजादि चूर्ण। चव्य, पीपलामूल, देवदारु, तथा ऊपर कहे कौटजत्रिफलानिवपटोलघननागरैः। २३ । भावितानि दशाहानि रसैर्वित्रिगुणानि बा । हुए त्रिकुटा, चीता, बायबिडंग, त्रिफला शिलाजतुपलान्यष्टौ तावती सितशर्करा ॥ और मोथा ये नौ द्रव्य, इन सबको समान त्वक्षीरीपिप्पली धात्री कर्कटाख्याः भाग लेकर चूर्ण बना लेवै । तथा काजल पलोन्मिताः। के समान पिसा हुआ मंडूर सबसे दुगुना निर्दग्धाः फलमूलाभ्यां फल युत्त्यालेबै । इस मंडूर चूर्ण को सब द्रव्यों से त्रिजातकम् ॥ २५ ॥ मधु त्रिपलसंयुक्तान् कुर्यादक्षसमान्गुडान् । अठगुने गोमूत्र में पकाकर रखले जब यह दाडिमांबुपयः पक्षिरसतोयसुरासवान् । गोलियां बंधने के योग्य होजाय तव ऊपर तान् भक्षयित्वानुपिवेन्निरन्नो भुक्त एव वा। लिखा हुआ स्वर्णमाक्षिकादि. चूर्ग डालकर पांडुकुष्ठज्वरप्लीहतमकार्शोभंगदरम् ॥ हृन्मूत्रपूतीशुक्राग्निदोषशोषगरोदरम् । गोलियां बनालेवे इनको खाकर तकके साथ । कासासृग्दरपित्तासृक्शोफगुल्मगलामयान्। भोजन करै । ये मंडूर बटिका पांडुरोगियों | मेहवर्मभ्रमान् हन्युः सर्वदोषहराः शिवाः। को प्राणदाता हैं तथा इनसे कुष्ठ, अजीर्ण, अर्थ-कुडाकी छाल, त्रिफला, नीम, शोथ, ऊरुस्तंभ, अरुचि, अर्श, कामला, पर्वल, मोथा, सोंठ, ये सब एक एक पल, प्रमेह, और प्लीहा नष्ट होजाते हैं। . जल चौसठ पल में काढा करे चौथाई शेष - ताप्यादि चूण । रहने पर उतार कर छानले । इस काढेको ताप्यादिजतुरोग्यायोमलाः पंचपलाः पृथक् | आठ पल शिलाजीत में दस दिन, बीस दिन चित्रकत्रिफलाब्योषावडंगैः पालिकैःसह । शर्कराष्टपलान्भिनाश्चूर्णिता मधुना द्रुताः॥ वा तीस दिन भावना दे फिर इतनी ही पांडुरोग विपं कामं यक्ष्माण विषम ज्वरम् । शर्करा तथा वंशलोचन, पीपल, आमला. · कुष्ठान्यजरक मेहं शोफ श्वासमराचेकम् ॥ | काकडासींगी और कटेरी के फल तथा जड For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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