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(६३४]
अष्टांगहृदय ।
अ०१६
द्राक्षाओं को मलकर पान करावै । अथवा | गुल्मानाहामवातांश्च रक्तपित्तं च तजयेत् ॥ गोमूत्र में हरड पीसकर पान करावै, अथवा अर्थ-इन्द्रायण, कुटकी, मोथा, कूठ, गोमत्र में त्रिफला औटाकर पान करावै । इस देवदारु और इन्द्रजौ, ये सब एक एक कर्ष, से पांडुरोग नष्ट होजाता है। मूर्वा दो पिचु, अतीस आधा कर्ष, इनका चूर्ण अन्य प्रयोग।
वनाकर गरम पानी के साथ पीकर ऊपर स्वर्णक्षीरीत्रिवृच्छयामाभदारुमहौषधम्॥ से थोडासा शहत चाटे । इससे पांडुरोग, गोमूत्रांजलिना पिष्ट शृतं तेनैव वापिवेत् ।। ज्वर, दाह, खांसी, श्वास, अरुचि, गुल्म, साधितं क्षीरमभिर्वा पिवेदोषानुलोमनम् ॥
आनाह, आमवात और रक्तपित्त दूर हो __ अर्थ-स्वर्णक्षीरी, निसोथ, श्यामानि
जाते हैं । सोथ, देवदारु और सोंठ इन सब द्रव्योंको
अन्य प्रयोग। गोमूत्र के साथ पीसकर वा पकाकर पीना
वासागुडू त्रिफलाकट्वीभूनिवनिवजः । चाहिये । अथवा इन्हीं उक्त द्रव्यों के साथ
काथः क्षौद्रयुतो हंति पांडुपित्तास्त्रकामलाः॥ पकाया दुआ दूध पांडुरोगी को पान करात्रै ___ अर्थ-अडूसा, गिलोय, त्रिफला,कुटकी इससे दोषों का अनुलोमन होता है। चिरायता और नाम इनके काढे में शहत
. अन्य प्रयोग । मिलाकर पीने से पांडुरोग और रक्तपित्त, मूत्रे स्थितं वा सप्ताहं पयसाऽयोरजः पिवेत् । | तथा कामला जाते रहते हैं। जाणे क्षीरेण भुंजीत रसेन मधुरेण वा ॥९॥
व्योषादि चूर्ण । __ अर्थ-लोहचूर्ण को सातदिन तक गो
व्योषाग्निवेल्लत्रिफलामुस्तैस्तुल्यमयोरजः। मूत्र में भिगोदेवै, फिर इसको दूधके संग
चूर्णितं तक्रमध्वाज्यकोष्णांभोभिः पान करे । इसके पच जाने पर दूध के
प्रयोजितम् ॥ १४॥
कामलापांडुहृद्रोगकुष्ठा मेहनाशनम्। साथ अथवा मधुररसयुक्त मासके साथ भो- |
___अर्थ-त्रिकुटा, चीता, बायविडंग, त्रिजन करावे । अन्य अवलेह ।
| फला, मोथा, इन सबको समान भाग ले शुद्धश्चोभयतो लिह्यात्पथ्यां मधुघूतद्रुताम्
और इन सबके समान लोहभस्म इनका . अर्थ-वमन और विरेचन दोनों प्रकार | चुण बनाकर मात्रा के अनुसार तक मधु, से रोगी को शुद्ध करके हरड को पीसकर | घी वा गुनगुने पानी के साथ सेवन करने मधु और घृत में मिलाकर चाटनेको दे । । से कामला, पांडुरोग, हृद्रोग, कुष्ठ, अर्श अन्य,प्रयोग।
और प्रमेह नष्ट होजाते हैं। विशालां कटुकां मुस्तां कुष्ठं दारुकलिंगकः॥
पांडुरोग पर बटिका । कशाद्विपिचुर्मू, कर्षाधीशा घुणप्रिया । | गुडनागरमंडूरतिलांशान्मानतः समान् ॥ पीत्वा तच्चूर्णमंभाभिः सुखर्लेिह्यात्तत्तो मधु॥ पिप्पलीद्विगुणान्दद्याद्गुटिकां पांडुरोगिणे । पांडुरोग ज्यरं दाहं कासं श्वासमरोचकम् । अर्थ-पुराना गुड, सोंठ, मंडूर और
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