SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 730
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ. १६ चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । (६३३) स्थैर्यकृत्सर्वधातूनां बल्यं दोषानुबंधहृत् ॥ अन्य घृत । अर्थ-उदर रोग में सब प्रकार की दाडिमात्कुडवो धान्याकुडबाध पलं पलम् औषधी के सेवन के पीछे दूध और तक चित्रकाच्छंगवेदाच पिप्पल्यर्धपलं च तैः॥ का अनुपान करना चाहिये, तक सम्पूर्ण कल्कितर्विशतिपलं धूतस्य सलिलाढके। सिद्धं हृत्पांडुगुल्मार्शःप्लीहवातकफार्तिनुत् ॥ धातुओं को स्थिर कर देता है, तथा बल दीपनं श्वासकासघ्नं मूढवातानुलोमनम् । कारक और दोषों के अनुबन्धन को दूर | दुःखप्रसविनानां च वंध्यानां च प्रशस्यते ॥ करनेवाला है। अर्थ-अनार एक कुडब,धनियां आधाकुडव, दूध को श्रेष्ठता। चीता और सौंठ एक एक पल, पीपल आधा भैषजोपचितांगानां क्षीरमेवामृतायते ॥ अर्थ-जिस रोगी का देह औषधों के पल, इन सबका कल्क करके बीस पल घी सेवन से पुष्ट होगया है, उसको दूध पान समेत एक आढक जलमें पकावै । यह घृत कराना ही अमृत तुल्य है । हृद्रोग, पांडुरोग,गुल्मरोग, अर्शरोग, प्लीहा, इतिश्री अष्टांगहृदयसहितायां वातकफ, श्वास और खांसी इन रोगों को भाषाटीकान्वितायां चिकित्सित दूर करताहै अग्निसंदीपनहै, मूढ वातका स्थाने उदरचिकित्सितनाम अनुलोमन करनेवालाहै, यह कष्टसे प्रसव पञ्चदशोऽध्यायः । होनेवाली और बंध्यात्रियों के लिये विशेष उपयोगी है। उक्तरोगमें वमनादि । षोडशोऽध्यायः। स्नेहित वामयेत्तीक्ष्णैः पुनः स्निग्धं च शोधयेत पयसा मूत्रयुक्तेन बहुशः केवलेन वा ॥५॥ अथाऽतःपांडुरोगचिकित्सतंव्याख्यास्यामः ____ अर्थ-पांडुरोगी को स्निग्ध करके तीक्ष्ण ... अर्थ-अब हम यहांसे पांडुरोगचिकित्सा औषधियों द्वारा पमन करावै । फिर पुननामक अध्याय की व्याख्या करेंगे। वार स्निग्ध करके गोमूत्र और दूधसे अथवा पांडुरोगमें कल्याणकघृत । केवल दूध द्वारा बार बार शोधित करे । पांड्वामयी पिवेत्सर्पिरादौ कल्याणकायम्। अन्य प्रयोग। पंचगव्यं महातिक्तं शृतं वाऽरग्वधादिना ॥ दतीपलरसे कोणे काश्मर्याजलिमासुतम् । अर्थ-पांडुरोगी को प्रथमही कल्याणक | द्वाक्षांजलिं वा वृदित तत् पिवेत्घृतपान करावे, फिर अपस्मार चिकित्सित पांडुरोगाजित् ॥५॥ में कहा हुआ पंचगव्य घृत, कुष्ठचिकित्सा मूत्रेण पिष्टां पथ्यां वा तत्सिद्धं वा फलत्रयम् में कहा हुआ महातिक्तक घृत, अथवा आ अर्थ-पांडुरोगी के लिये दंती के एक रग्वधादि गणोक्त द्रव्योंसे पकाया हुआ घी पल कुछ गरम रसमें एक. अंजली खंभारी . देना चाहिये। | के फलों का आसुत अथवा एक अंजली For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy