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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६३८) अष्टांगहृदय । अ०१६ प्रातःप्रातर्मधुयुतं कामलार्ताय योजयेत्। । अर्थ-रूक्ष, शीतल, भारी, मिष्ट अन्न अर्थ-त्रिफला, गिलोय, दारूहल्दी, और भोजन, व्यायाम और बलनिग्रह, इन सब नीम इनमेंसे किसी एक के क्वाथके साथ | कारणों से वायु कुपित होकर और कफ से शहत मिलाकर प्रातः काल सेवन करनेसे मिलकर जब पित्तको बाहर निकालतीहै तब कामला रोग नष्ट हो जाता है । रोगी के नेत्र, मूत्र,त्वचा, हलदीके रंगके होजाअन्य प्रयोग। तेहैं, मलका रंग सफेद और पेट में गुडगुडानिशागैरिकाधात्रीभिः कामलापहमंजनम् ।। हट के साथ स्तब्धता होतीहै, हृदयमें दुर्व। अर्थ-हली, गेरु, और आमला इनका अंजन नेत्रों में लगाने से कामला रोग जा लता, मंदाग्नि, पार्श्ववेदना, हिचकी, श्वास, अरुचि, और उबर इन सब उपद्रवों ता रहताहै । के साथ क्रमसे कुपित हुई वायु शाखामें सअन्य प्रयोग। माश्रित पित्तमें जा मिलती है । इक अवस्था तिलपिष्टनिभं यस्तु कामलावान्सृजन्मलम् । में रोगीको रूक्ष कटु और अम्लरसयुक्त, मोर कफरुद्धपथं तस्य पित्तं कफहरैर्जयेत् ॥ __ अर्थ-जो कामलारोगी तिलकी पिटठी तीतर, और मुर्गेका मांसरस तथा सूखीमूली के समान मलका त्याग करताहै उपके पि- और कुलथी का यूष भोजन में देना चाहिये तका मार्ग कफद्वारा रुक जाताहै । इसलिये | इसमें अत्यन्त खट्टे, तीखे चरपरे और नमउसे कफनाशक औषधे देनी चाहिये। कीन पदार्थ भी हितहैं, तथा त्रिकुटाके चूर्ण . अन्य चिकित्सा । | को विजौरेके रसके साथ सेबन करै । ऐसा सक्षशीतगुरुस्वादुव्यायामवलनिग्रहैः। । करनेसे पित्त अपने स्थानपर आजाता है । कफसमूर्छितो वायुर्यदा पित्तं बहिः क्षिपेत् | मी मामी को मलकी सफेदी दूर होकर पीलापन आजाता हारिद्रनेत्रमूत्रत्वक्श्वेतवस्तिदा नरः।। भवेत्साटोपविष्टभो गुरुणा हृदयेन च ॥ । है । वायु भी आटोप और उपद्रवों के साथ दौर्बल्याल्पानिपावर्ति- प्रशमित होजातीहै । इस तरह सब उपद्रबों हिमाश्वासारुचिज्यरैः।। के शांत होनेपर कामलामें कही हुई चिकि. क्रमेगाल्पेऽनुज्येत पित्ते शाखासमाश्रिते सा करनी चाहिये। रसैस्तं रूक्षकवम्लैः शिखितित्तिरिदक्षजैः | शुष्कमूलकजैयूंपैःकुलत्थोत्थैश्च भोजयेत् ॥ कुंभकामला की चिकित्सा । भृशाम्लतीक्ष्णकटुकलवणोष्णं च शस्यते। | गोमूत्रेण पिबेत्कुंभकामलायां शिलाजतु ॥ सवीजपूरकरसं लिह्याद्योषं तथाशयम् ॥ मासंमाक्षिकातं वाकिटं वाऽथहिरण्यजम स्वं पित्तमेति तेनाऽस्य शकृदप्यनुरज्यते । वायुश्च याति प्रशमं सहाटोपाद्युपद्वैः ॥ ___ अर्थ-कुंभकामला में रोगी को शिलानिवृत्तोपद्रवस्याऽस्य कार्यः जीत, वा सोनामाखी, वा रूपामाखी का कामलिको विधिः । । एक महिने तक सेवन करावै । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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