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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६२८] अष्टांगहृदय । अ० १५ की कालशाक वा यवशाक को इन्हीं के स्व- । कर कंजेका अथवा सेंधानमक, चीतां और रसमें सिद्ध करके सेवन करे । पीपल का चूर्ण डालकर सहजने का काढा - इन शाकोंमें खटाई, नमक और स्नेह न | अथवा हिंग्वादि चूर्ण, क्षार वा षटू पलादि डालना चाहिये । स्विन्न वा अस्विन्न अन्न घृत का बलके अनुसार प्रयोग करे । याग देवे, तृषा लगनेपर शाकोंका स्वरस गरम अलके साथ चूर्ण । ही पीलेवे । इसतरह एक महिने तक करता पिप्पलीनागरं दंती समांशं द्विगुणाभयम् ।। विडार्धाशयुत चूर्णमिदमुष्णांबुना पिवेत् । जठर में हथनी का दूध । ___ अर्थ-पीपल,सौंठ और दंती समान भाग एवं विनिहते शाकैर्दोषेमासात् परं ततः। | हरड दो भाग, विडनमक आधा भाग इनका दुर्वलाय प्रयुजीत प्राणभृत्कारभं पयः॥ | चूर्ण बनाकर गरम जलके साथ सेवन करै । । अर्थ-इसतरह शाक सेवनसे दोषके दूर विडंगादि सेवन । होजानेपर एक महिने पीछे दुर्बल रोगी को विडंगचित्रकं सक्तून् सघृतान् सैंधवं पचाम् बलवान् करनेके निमित्त हथनी का दूध दग्ध्वा कपाले पयसा गुल्मप्लीहापहं पिबेत् । पीने को दे। अर्थ-वायविडंग, चीता, सत्तू, घी, सेंप्लीहोदर की चिकित्सा । धानमक और वच इनको ठीकरेमें जलाकर प्लीहोदरे यथादोषं स्निग्धस्य स्वेदितस्य च ।। पीसले । इस क्षारका दूधके साथ सेवन कसिरां भुक्तवतो दना वामवाही विमोक्षयेत्। रने से गुल्म और प्लीहा जाते रहते हैं। - अर्थ-प्लीहोदर में वातादि दोषके अनु अन्य प्रयोग। सार रोगी को स्निग्ध और स्वेदित करके | तैलोन्मिधैर्बदरकपत्रैः समर्दितैःसमुपनद्धः॥ दही के साथ भोजन कराके बांये हाथकी मुशलेन पीडितोऽनु योति प्लीहा पयोभुजो नाशम् । फस्दः खोलकर रुधिर निकाले । अर्थ-वेरके पत्तों को वारीख पीसकर उक्तरोगमें क्षारपानादि । तेल मिलाकर प्लीहा पर लेपकर के ऊपर से लब्धे घले च भूयोऽपि स्नेहपीतं विशोधितम् समुद्रशुक्तिजं क्षारं पयसा पाययत्तथा ॥ एक मूसल द्वारा पीडित करे, ऊपर से दूध अम्ल शृतं विडकणाचूर्णाढ्यं नक्तमालजम्पावै तो प्लीहा नष्ट होजाती है । सोभांजनस्य वा काथं सैंधवाग्निकणान्वितम हिंग्वादिचूर्ण क्षाराज्य युजीत च यथावलम् कामलादि रोगों पर दवा । . अर्थ-रोगीके बलवान् होजानेपर फिर रोहीतकलताःक्लप्ता खंडश साभयाजले ॥ - मूत्रे वाऽऽसुनुयात्तत्तु सप्तराजस्थितं पिबेत्। स्नेहपान कराके विरेचन देवे । फिर दूध कामलाष्लीहगुल्मार्शः कृमिमेहोदरापहम् ॥ के साथ समुद्रकी सीपीका खार पान करावे | अर्थ-रोहेडे की टहनीयों को टुकडे टुभथवा कांजी के साथ सिद्ध किया हुआ और कड़े करके हरड के साथ जलमें वा गोमत्र और चिडनमक और पीपल का चूर्ण मिला- में भिगोंदे सातदिन पीछे इस जल वा मूत्रको For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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