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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ०१५ चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । १६२३) क्त सव प्रकार के घी तयार कर करके गल्म / मासं युक्तस्तथा हस्तिपिप्पलीविश्वभेषजम् गर दोष और उदररोगों की शांति के लिये अर्ध-चीता और देवदारू का कल्क प्रयोग करता रहै । दूध के साथ पीवे अथवा गजपीपर और आनाह पर घी। सोंठका कल्क नियमानुसार एक महिने तक पीलुकल्कोपसिद्धं वा घृतमानाहभेदनम्। । तेल्वक नीलिनीसर्पिः स्नेहं वा मिश्रकं पिबेत् । प्रवृद्ध उदरकी चिकित्सा । अर्थ-पील के कल्क से सिद्ध किया विडंगचित्रकोदंती चव्यं व्योषंच तैः पयः। हुआ घी, तेल्वक घृत, नीलिनी घृत वा कल्कैः कालसमैः पीत्वा प्रवृद्धमुदरं जयेत् मिश्रक स्नेहपान करने से आनाह रोग जा- अर्थ-बायविडंग, चीला, दंती, चव्य, ता रहता हैं ! त्रिकुटा, इन सब द्रव्यों का एक तोले कल्क दोष दूर होनेपर पथ्य । | दूधमें मिलाकर पीने से वढा हआ उदर हृतदोषः क्रमादश्नन् लघुशाल्योदनं प्रति। रोग नष्ट हो जाता है । ___ अर्थ-पूर्वोक्त रीतिसे चिकित्सा करने उदररोग में भोजन । से दोषों के निकल जाने पर शाली चांबलों भोज्यं भुंजीत वामासंस्महीक्षीरघृतान्वितम् का भात खानेको दे। उत्कारिकांवास्नकक्षीरपीतपथ्याकणाकृताम् उदररोगमें हरीतकी संवन । उपयुंजीत जठरी दोरशनिवृत्तये ॥३९॥ ___ अर्थ-सहुड के दूरसे सिद्ध किया हुआ हरीतकीसहस्रं घा गोमत्रेण पयोनपः। घृत के साथ एक महिने तक भोजन करै, सहनं पिप्पलानां वा समकक्षीरेण सुभावितम् अथबा थूहर के दूधके साथ कुरंटक, हरड पिप्पलींवर्धमानां वाक्षीराशी वा शिलाजतु | और पीपल डालकर सिद्ध कीहई उत्कारितद्वद्वा गुग्गुलं क्षीर तुल्याकरसं तथा का खानेको दे । अर्थ-उदररोगी को उचित है कि बचे पार्शशलादि की चिकित्सा ॥ . हुए दोषों की निवृति के लिये गोमूत्र से पार्श्वशुलमुपस्तंभहृद्ग्रहं च समीरणः। भावना दीहुई सहस्र हरीतकी वर्द्धमान रीति | यदि कुर्यात् ततस्तैलं बिल्वक्षारसन्वितं पिबेत् से सेवन करके दूधका अनुपान करता रहे पक्कं वा टिकवलापलाशं तिलनालजैः । अथवा सेंहुड के दूधकी भावना दीहुई स- क्षारैः कदल्यपमार्गतर्कारीले पृथक्कृतैः हस्र पीपल वर्द्धमान रीतिसे सेवन करै ।। अर्थ यदि कुपित हुआ वायु पसली में अथवा केवल दूधको पीकर शिलाजीत, वा । दर्द, स्तब्धता और हृद्रोगों को उत्पन्न करै गूगल अथवा समान भाग अदरख और तो वलगिरी और जवाखार मिलाकर तेल दूध मिलाकर उपयोग में लावै । को पावै, अथवा टॅटू, खरैटी, केसू, और ___ अन्य प्रयोग। तिलनाल इनके साथ क्षारके साथ पकाया चित्रकामदारुभ्यां कल्कं क्षीरेण वा पिवेत्। हुआ तेल अथवा केला, ओंगा और त. For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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