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( ६२२]
अष्टांगहृदय ।
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अग्नौ विलाप्य मथितं खजेन यवपलके।
अन्य विधि । निधापयेत्ततो मासादुद्धतं गालितं पचेत् ॥ तथा सिद्धं घृतप्रस्थं पयस्यष्टगुणे पिबेत् ।। हरीतकानां काथेन दना चाऽम्लेन- स्नुक्षीरपलकल्केन त्रिवृताषट्पलेन च ।
संयुतम् । अर्थ-पूर्ववत् पकायहुआ घी एक प्रस्थ उदर गरमष्ठीलामानाहं गुल्मविद्रधिम् ॥
आठगुने दूधमें पकावै, इसमें सेंहुड का दूध हत्येतत्कुष्ठमुन्मादमपस्मारं च पानतः। ___ अर्थ-एक प्रस्थ हरडका महीन चर्ण
एक पल, तथा निसोथ का कल्क छः पल एक आढक घृतमें अग्निपर चढ दे और
डाल देना चाहिये । यह घृत पूर्ववत गुणकलछी से चलाता रहे, पकजानेपर एक पात्र
कारक होता है। में भरकर जौके ढेर में एक महीने तक गढा
पेयापान । रहनेदे, फिर निकालकर पिघलाकर छानले।
" एषां चाऽनु पिबेत्पेयां रसं स्वादु
पयोऽथवा ।। ३४॥ तदुपरांत हरडके क्वाथ, दही और कांजीके |
| अर्थ-इन सब प्रकार के घीओं को साथ इस घृतको फिर पकावे । यह घृत ।
सेवन करने के पीछे, पेया, मिष्ट मांसरस उदररोग, दूर्षाविष, अष्ठीला, आनाह, गुल्म वा दुग्ध का अनुपान करै । विद्रधि, कुष्ठ, उन्माद और अपस्मार इन सब
घृत के पवनेपर कर्तव्य । रोगों को दूर कर देता है।
घृते जीर्णे विरिक्तश्च कोष्णं नागरसाधितं - स्नुही घृत ॥ | पिबेदबु ततः पेयां ततो यूषं कुलत्थजं ॥ स्नुक्षीरयुक्तागोक्षीराच्कृतशीतात्खजाहतात. अर्थ-घीके पचनान और रोगी के विग्रजातमाज्यं स्नुकक्षीरसिद्धंतच्च तथागुणम् रिक्तहोने पर सोंठ डालकर औटाया हुआ अर्थ-सेंहुड के दूध को गौ के दूध
गुनगुना पानी पीनेको दे, पीछे पेया और में मिलाकर आटावै, फिर ठंडा होने पर
कुलथी का यूष खानको दे। कलछी से मथ कर घृत निकाल ले, इस घृत
बार बार घृत प्रयोग ॥ को सेंहुड के दूध के साथ फिर पकावै, यह
पिरेशस्त्र्यहत्येवं भूयो वाऽप्रतिभोजितः । वृत पूर्ववत् गुणकारी होता है ।
| पुनः पुनः पिवेत्सर्पिरानुपूर्ध्याऽनयैव च ॥ . अन्यत ।
अर्थ-रूक्ष व्यक्ति तीन दिनतक इसक्रम क्षीरद्रोणं सुधाक्षारप्रस्थार्धन युतं दाध ॥ ।
से सेवन करके पेयादि पथ्यका सेवन करता जातं मथित्वा तत्सपिस्त्रिवृत्सिद्धं च तद्गुणं
अर्थ-दूध एक द्रोण, आधा प्रस्थ सें-हुआ इसी क्रमसे वार बार घृतपान करै । हुडका दूध इनको औटाकर दही जमाकर
घीके प्रयोग का विधान ॥ घी निकाल ले । इस घृत को निसाथ के
| घृतान्येतानि सिद्धानि विदध्यात्कुशलो
भिषकू। साथ पकाकर सेवन करने से पूर्ववत् गुण- गुल्मानां गरदोषाणामुदाणां च शांतये॥ कारक होता है।
___ अर्थ-कुशल वैद्यको उचित है कि पूर्वो
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