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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म. १४ चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । (६०९) - धानामयै शार्दूल चूर्ण। | और सबके ऊपर नमक रखदे । फिर इस हिंगूप्राविडशुंठ्यजाजिविजयावाट्याभिः को जलाकर चूर्ण बना लेवै । इस चूर्ण | को दही के तोड के साथ सेवन करना चाचूर्ण कुंभनिकुंभमूलसहितैर्भागोत्तरंवर्धितैः हिये, इससे गुल्म, उदर, सूजन,और पांडुरोग पतिः कोष्णजलेन कोष्ठजरुजौगुल्मोदरादीमयं शार्दूलः प्रसभं प्रमथ्य हरति व्याधीन - ॥ जाते रहते हैं। मृगौघानिव ॥ ३६ अन्य चूर्ण । . अर्थ-हींग, वच, विडनमक, सोंठ, जीरा, हिंगुत्रिगुणं सैंधवमस्मात्रिगुणंतुतैलमैरंडम् हरड, पुष्करमूल, कूठ, निसौथ, और जमाल- | तत्रिगुणरसोनरसं गुल्मोदरवर्भशूलघ्नम् ॥ गोटा की जड इन सब द्रव्योंको एक एक ___ अर्थ-हींग, एक माग, सेंधानमक तीन भाग बढाकर लेबै और इनका चूर्ण बनाकर भाग, अरंडी का तेल नौ भाग, लहसन का रस २७ भाग इसका सेवन करने से गुल्म गरमजल के साथ पावै। इसके पीनेसे कोष्ठज वेदना, गुल्म और अन्य उदरादिरोग ऐसे उदर, वृद्धि और शूल नष्ट हो जाते हैं । नष्ट होजाते हैं जैसे शार्दूल हरिणों के समूह अन्य प्रयोग । को नष्ट करदेता है। मातुलुंगरसो हिंगुदाडिमं बिडसेंधवम् । सुरामंडेन पातव्यं बातगुल्मरुजापहम् ॥ सिंधृत्य चूर्ण । ___ अर्थ-विजौरे का रस, हींग, अनार, सिंधूत्थपथ्याकणदीप्यकानां चूर्णानि तोयैः पिवतां कवोष्णैः। विडनमक, सैंधानमक, इन सवको सुरामंड प्रयाति नाशं कफवातजन्मा के साथ पीनेसे वातज गुल्मकी वेदना शांत नाराचनिभिन्न इबामयौघः होजाती है । अर्थ-संधानमक, हरड, पीपल, और शंठयादि चूर्ण । अजवायन इनके चूर्ण को गरग जल के शुख्याः कर्ष गुडस्य द्वौ धौताकृष्णतिलासाथ पान करै । यह वातज रोग समूहों त्पलम्। को ऐसे खो देता है, जैसे कोई तीर से खादन्नेका संचूर्ण्य कोष्णक्षीरानुपोजयेत् । भेदन करता है। वातहृद्रोगगुल्माशेयोनिशूलशकद्ग्रहान् । अन्य चूर्ण । ___ अर्थ-सौंठ एक कर्ष, गुड दो कर्ष, धुली पूतीकपत्रगजचिर्भटचव्यवह्नि हुई सफेद तिली एक पल इनका चूर्ण वना ___ व्योषं च संस्तरचितं लवणोपधानम् । कर सेवन करे, ऊपरसे गरम दूधका अनु दग्ध्वा विचूर्ण्य दधिमस्तुयुतं प्रयोज्यं पान करे । इससे वातन हृद्रोग, गुल्म, गुल्मोदरश्वयथुपांडुगदोद्भवेषु॥ ३८॥ अर्श, योनिशूल, और मलका विवंध दूर अर्थ पूतिकरंज के पत्ते, गजपपिळ, | होजाते हैं । इन्द्रायण, चव्य, चीता, त्रिकुटा, इन सब | अन्य प्रयोग । द्रव्यों को इसी क्रमसे एक के ऊपर एक रखदे | पिवेदैरंडतैलं तु वातगुल्मी प्रसन्नया ॥ ७७ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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