________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
(६१०-1
मण्यनुवले वायो पिते तु पयसा सह । । अर्थ - वातगुल्मवाला रोगी वायु और कफका अनुबंध होने पर प्रसन्ना के साथ अरंड का तेल पान करे । यदि पित्तका अनुबंध हो तो दूध के साथ पीना चाहिये । गुल्म में विरेचनादि ।
विवृद्धं यदि वा पित्तं संतापं वातगुल्मिनः ॥ कुर्याद्विरेचनीयोऽसौ सस्नेहैरानुलोमकैः । तापानुवृत्तावेवं च रक्तं तस्याऽवसेचयेत् ॥
अर्थ - वातगुल्मरोगी का पित्त वृद्धिको प्राप्त होकर यदि संताप करे तो स्नेहयुक्त अनुलोमन करनेवाले विरेचन के योग्य द्रव्यों से विरेचन करावे । ऐसा करनेपर भी यदि संताप रहै तो रक्तमोक्षण करना चाहिये । अन्य प्रयोग |
मष्टहृदय |
साधयेच्छुद्धशुष्कस्य लशुनस्य चतुःपलम् । क्षीरोदकेऽष्टगुणिते क्षीरशेषं च पाचयेत् ॥ वातगुल्ममुदावर्त गृध्रसीं विषमज्वरम् । हृद्रोगं विद्रधि शोषं साधयत्याशु तत्पयः ॥
अर्थ - छिला हुआ और सूखा ल्हसन चार पल लेकर आठगुने दूध और पानी में पकावे, जव दूध बचरहे तब उतारकर छानले, इस दूधको पीनेसे घातगुल्म, उदा'घर्त, गृध्रसी, विषमज्वर, हृद्रोग, विद्रधि और शोषरोग शीघ्र दूर होजाते हैं । गुल्मपर तैल ।
तैलं प्रसन्नागोमूत्रमारनालं यवाग्रजः । गुल्मं जठरमानाहं पीतमेकत्र साधयेत् ॥
अर्थ - तिलकातेल, प्रसन्ना, गोमूत्र, आरनाल और जवाखार इन सबको मिलाकर पीनेसे गुल्म, जठररोग आनाह दूर हो जाते हैं । चित्रकादि क्वाथ | चित्रकथेकरंड्ठािथः परं हितः ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
म० १४
शूलानाह विबंधेषु सहिंनुविडसैंधवः ॥ अर्थ- चीता, पीपलामूल, अरंडकी जड और सौंठ इनका काढा करके फूली हुई हींग विडनमक और सेंधानमक पीसकर मिलाकर पी तो शूल, आनाह और निबंध जाते रहते हैं ।
पुष्करादि क्वाथ | पुष्करैरंडयोर्मूलं यवधन्ययवासकम् । जलेन कथितं पीतं कोष्ठदाहरुजापहम् । अर्थ - - पुष्करमूल, अरंडकी जड, जौ और जवासा इनका काढ़ा पीने से कोष्टका दाह और बेदना शांत होजाती है । अन्य, प्रयोग |
वाट्याहवैरंडदर्भाणां मूलं दारु महौषधम् । पीतं निःक्काथ्य तोयेन कोष्ठपृष्ठयंसशूलजित्
अर्थ - खरैटी की जड, अरंडकी जड, दाभकी जड, देवदारु, सोंठ, इनका काथ पीने से कोष्ठ, पीठ, और कंधा इनका दर्द जाता रहता है ।
शिलाजीत का प्रयोग | शिलाजं पयसाऽनल्पपंचमूलसृतेन वा । वातगुल्मी पिवेद्वाट्यमुदावर्ते तु भोजयेत् । स्निग्धं पैप्पलिकैयूँषैर्मूलकानां रसेन वा । बविण्मारुतोऽश्नीयात्क्षीरेणोष्णेन
For Private And Personal Use Only
यावकम् ॥ ५२ ॥ कुल्माषान्वा बहुस्नेहान् भक्षयेल्लवणोत्तरान् अर्थ- वातगुल्म में दूध के साथ अथवा वृहत्पंचमूल के साथ पकाये हुए दूध के साथ शिलाजीत पीना चाहिये, यदि उदावर्त हो तो स्नेहसंयुक्त खरेटी की जड़ को पीपल के यूत्र के साथ अथवा मूली के रस के साथ देवै । यदि मल और अधोवायुकी