SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 703
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६०६ ] अष्टांगहृदप । अ० १४ खार, चीता, कचूर, बच,अजमोद,इलायची | अजाजाहिंगुहपुषाकारवृिषकोषकैः । तुलसी और दही इनके साथ में पकाया | निकुंभकुंभमूवैभपिप्पलीवेल्लवाडिमैः हुआ घी पान करने से वातगुल्मवाले रोगी | श्वदंष्ट्रात्रपुसरुवीजहिनाश्मभेदकैः । मिसिद्विक्षारसुरससारिवानीलिनीफलैः ।। के शूल और आनाह नष्ट होजाते हैं । घी त्रिकटुनिपटूपेतैर्दाधिकं तद्यपोहति ।। के पकाने की यह विधि है कि हींग से रोगानाशुतरान्पूर्वान्कष्टानपि च शीलितम् लेकर सुरसा पर्यंत द्रव्यों का जो परिमाण | अपस्मारगरोन्मादमूत्राघातानिलामयान् । है उस से चौगुना घी, घी के समान दही, ___ अर्थ-दसमूल, खरेटी, नीलनी,कलोंजी घीसे चौगना जल डालकर पकावै । दोनों प्रकारकी सांठ, पुष्करमूल, अरंड, अभ्य वृत। रास्ना, असगंध, भाडंगी, गिलोय, कचूर हपुषोषणपृथ्वीकापंचकोलकदीप्यकैः।। और गंध पलास प्रत्येक दो दो पल, जौ, साजाजीसैंधवैर्दना दुग्धेन च रसेन च दाडिमान्मूलकात्कोलात्पचेत्साहिति तत् | बेर, कुलथी, और उरद एक एक प्रस्थ इन घातगुल्मदिरानाहपार्श्वहृत्काष्ठवेदनाः सब द्रब्योंको एक द्रोण जलमें पकावै, चौथाई योन्यमॆग्रहणीदोषकासश्वासारुचिज्वरान् । शेष रहनेपर उतारकर छानले । इस क्वाथ अर्थ-हाऊबेर, कालीमिरच, इलायची, | में समान भाग दही, एक प्रस्थ घी, तथा पंचकोल, अजवायन, कालाजीरा और सेंधा- अनार, आमडा, और बिजौरे का रस डाल नमक, इन सब द्रव्योंका कल्क, दही, दूध, कर पकावै, इसीमें तुषांबु और कांजी भी डाल तथा अनार, मूली और बेरोंका रस इन सब दे । तथा भाडंगी, धनियां, वच, पीपलामूल, द्रव्यों के साथ पाक बिधि के अनुसार घृत रास्ना, चीता, धनियां, अजवायन, अजमोद, पकाकर सेवन करनेसे वातजगुल्म, उदररोग अमलवेत, कालाजीरा, सफेदजीरा, हींग, आनाह, पसली का दर्द, हृदयशूल, कोष्ठशूल हाऊबेर, सौंफ, अडूसा, क्षारमृत्तिका, दंती, योनिरोग, अर्शरोग, प्रहणीरोग, खांसी,श्वास निसौध, मूर्वा, गजपीपल,बायविडंग, अनार अरुचि, और ज्वर ये सब दूर होजाते हैं । का छिलका,गोखरू,खीराककडीके बीज,जटय दाधिक घृत । मांसी, पाखानभेद, सौंफ, जवाखार, सज्जी दशमूलं बलां कालां सुषवीं द्वौ पुनर्नवौ खार, गंधतृण, सारिवा, नीलनी, त्रिफला, पौष्कररैडरानाश्वगंधभार्यमृताशठी। त्रिकुटा, त्रिपटु ( तीनोंनमक ), इन सब पद्धपलाशं च द्रोणेऽपा द्विपलोन्मितम् । यवैः कोलैःकुलत्यैश्च माषैश्च प्रास्थिकैः सह | द्रव्यों को महीन पीसकर डालदे । इसतरह क्वाथेऽस्मिन्दाधिपात्रे च घृतप्रस्थं विपाचयेत् । इन सव द्रव्योंके साथ सिद्ध किया हुआ घी स्वरसैदाडिमाघ्रातमातुलुंगोद्भवैर्युतम् ।। यथोक्त रीतिसे पाक करे इस घृतका नाम तथा तुषांबुधान्याम्लयुतैःश्लक्ष्णैश्च कल्कितैः | भार्गीतुंबुरुषग्रंथाप्रथिरामाग्निधान्यकैः।। दाधिक घृतहै । इसके सेवन करनेसे पूर्वोक्त यवानकयवान्यम्कवेतसासितजीरकै। संपूर्ण भयानक रोग शीघ्र शांत होजाते हैं For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy