________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ०१४
चिकित्सितस्थान भाषाकासमेत ।
(६०५)
पानान्नान्वासनाम्यंगैः स्निग्धस्य- | वृंहणान्यन्नपानानि स्निग्धोष्णानि प्रदापयेत्
. स्वेदमाचरेत् । पुनः पुनः स्नेहपानं आनाहवेदनास्तभावबंधेषु विशेषतः २॥ अर्थ-वातिक गुल्म में यदि आग्नि तीन स्रोतसा मार्दवं कृत्वा जित्वा मारुतमुल्यणम् हो तथा. अधोवाय और पुरषिकी बिवद्धता भित्वा विबंध स्निग्धस्य स्वेदो गुल्ममपोहति
हो तो स्निग्ध और उष्णवीर्य बलकारक अर्थ-वातिक गुल्म रूक्ष औरशीतल पदार्थों के सेवन से होता है, इसमें मल
अन्नपानादि का सेवन कराना चाहिये और अधोवायु की रुकावट होती है और
तथा बार बार स्नेहपान कराना भी हित है। वेदना भी बहुत तीव्र होती है । इसकी |
| गुल्म में सानुवासन निरूपण ।
निरूहाः सानुवासनाः । चिकित्सा वातरोग चिकित्सितोक्त तेलों द्वारा
प्रयोज्या वातजे गुल्मे कफपित्तानुरक्षिणः । करनी चाहिये । स्नेहपान, स्निग्ध अन्न
___अर्थ-वातज गुल्म में कफ और पित्त का भोजन, अनुवासन और अभ्यंग इनसे | की रक्षा के निमित्त अनुवासन और निरूह ण रोगी को स्निग्ध करके स्वेदन करावै । जो का प्रयोग कराना चाहिये । रोगी आनाह,वेदना स्तंभता और विवंध से गुल्म पर वस्तिकर्म । पीडित हो तो बिशेषरूप से स्वेदन करना | बस्तिकर्म परं विद्याद्गुल्मघ्नं ताद्ध मारुतम्। चाहिये, इसका कारण यह है कि स्निग्ध
स्वस्थाने प्रथम जित्वा सद्यो गुल्ममपोहति ।
तस्मादभीक्ष्णशो गुल्मा निरूहैः सानुवासनैः मनुष्य को स्वेदन कराने से देह के संपूर्ण
प्रयुज्यमानैः शाम्यति वातपित्तकफात्मका: स्रोतों में मुदुता, उल्वण वायुकी समता और
___ अर्थ-गुल्मका नाश करने के लिये वबिबंधता का नाश होकर गुल्म शांत हो |
स्तिकर्म परम प्रधान उपाय है, यह पहिलेही जाता है।
पक्काशयस्थ वायुको जीतकर तत्काल गुल्म गुल्म में स्नेहपान | का नाश करदेता है । इसलिये वातिक, नेहपानं हितं गुल्मे विशेषेणोलनाभिजे।। पैत्तिक, कफज कैसाही गुल्म हो निरूहणं पक्वाशयगते बस्तिरुभयं जठराश्रये ॥ ४॥ और अनुवासन के निरंतर प्रयोग से शांत अर्थ-गुल्मरोग में स्नेहपान हितकारी
| होजाता है। होता है, विशेष करके नाभि के ऊपर होने वातगुल्म पर घृत । वाले गुल्मरोग में विशेषरूप से स्नेहपान | | हिंगुसौवर्चलव्योषविडदाडिमदीप्यकैः। । हित है । पक्काशय के गुल्ममें वस्ति, तथा | पुष्कराजाजिधान्याम्लवेतसक्षारचित्रकैः
शठीवचाजगंधैलासुरसैदेधिसंयुतैः। . जठराश्रय के गुल्म में स्नेहपान और वस्ति |
शूलानाहहरं सर्पिः साधयेद्वातगुल्मिनाम् दोनों हित हैं।
____ अर्थ-हींग, संचलनमक, त्रिकुटा, वायवातिक गुल्म में वृंहण । । विडंग, अनार की छाल, अजवायन, पुष्करदीप्तेऽनौ वातिके गुल्मे विवधेऽनिलवर्चसो। | मूल, कालाजीरा, धनियां, अम्लवेत, जवा;
For Private And Personal Use Only