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अ० ११
चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत 1
(५८९]
कपोतवंकातिबलाभल्लकोशीरकंतकम् ॥१८ | पाटली, पाठा, रक्तचंदन, कुरंटक, और वृक्षादनी शाकफलं व्याघ्री गुंठास्त्रकंटकम् ।। सांठ इनके काढे में उक्त पुसादि (खीरा यबाः कुलत्थाः कोलानिधरुणः कतकात्फलम् ऊषकादिप्रतीवापमेषां काथे शृतं घृतम्।
ककडी,और कसूमके बीज)के वीज,नीलकमल भिनत्ति वातसंभूतां तत्पीतं शीघ्रमश्मरीम् । क वाज मुलहटा मार शिलाजात का कल्क __ अर्थ-पाखानभेद, शोरा, खारीनमक, | डालकर घृत पकावै,इस घृतका सेवन करने से अश्मंतक, सितावर, ब्राह्मी, अतिबला, श्यौ- [ पित्तज अश्मरी के टुकडे होजाते हैं । नाक, खस, कंतक, रक्त चंदन अमर- कफजअश्मरी की चिकित्सा । बेल, शाकफल, कटेरी, गुंठतृण, गोखरू, | वरुणादिः समीरघ्नौ गणावेलाहरेणुका। जौ, कुलथी, बेर, वरुणा और निर्मली इन |
| गुग्गुलुर्मरिच कुष्टं चित्रका ससुरावयः॥
| तैः कल्कितैः कृतावापमूषकादिगणेन च । सत्र द्रव्यों के काढे में ऊषकादि गणोक्त भिनत्ति कफजामाशु साधित घृतमश्मरीम् द्रव्यों का प्रतीवाप देकर घृत पकावै, इस ___अर्थ-वरुणादिगण, वीरतरादिगण, वि. घीके पीने से वातज अश्मरी नष्ट होजाती | दार्यादिग़ण, इलायची, रेणुक, गूगल, है ( उषकादिगणः-क्षीरमृतिका, सेंधानमक
कालामिरच, कूठ, चीता, देवदारू, और शिलाजीत, दोनों प्रकार का कसीस हींग | उपर कहे दुए ऊषकादिगण इन संवका और तूतिया )।
कल्क कर के घृत पकावै । इस घृत के सेवाताश्मरी का भेदन पान । वन करने से कफज अश्मरी के टुकडे हो गंधर्वहस्तवृहतीव्यात्रीगोक्षुरकेचरात् ।। जाते हैं। मूलकल्कं पिबेदना मधुरेणाऽश्मभेदनम् ॥
क्षारादि विधि । ___ अर्थ-अरंड, दोनों कटेरी, गोखरू का- क्षारक्षारयवाग्वादि द्रव्यैः स्वैः स्वैश्चलाईख इनकी जड़ को पसिकर मीठे दही के
कल्पयेत् । साथ पीने से पथरी टुकडे टुकडे होकर अर्थ-अपने अपने योग्य द्रव्यों से क्षानिकल जाती है।
र,दूध,और यवागू आदि की कल्पना करनी पित्ताश्मरी की चिकित्सा । ।
चाहिये । कुशः काशःशरो गुंठ इत्कटो मोरटोऽश्मभित्
शर्करा का उपाय । दर्भो विदारी वाराही शाली मूलं त्रिकंटका
| पिचुकांकोल्लकतकशाकेंदीवरजैः फलैः ॥ भल्लुकः पाटली पाठा पत्तरः सकुरंटकः। | पीतमुष्णांबु सगुडं शर्करापातनं परम् । पुनर्नवा शिरीषश्च तेषां काथे पचेद्धृतम् ॥
अर्थ-कंजा, कंकोल, निर्मली, शाकफल' पिष्टेन पुसादीनां बीजेनेदीवरेण वा। और नीलकमल के बीज इनके उष्ण काढे मधुकेन शिलाजेन तत्पित्ताश्मरिभेदनम् ॥ | को गुड के साथ पान करै, इससे शर्करारोग
अर्थ-कुश, काश, सर, गुंठतृण, इत्कट | दूर होजाता है । मोरट, पास्वानभेद, दाभ, निदारीकंद, बा- शर्करा का अन्य उपाय । राहीकंद, चौलाई की जड़,गोखरू,श्यौनाक, | काँचोष्टरासभास्थीनि श्वदंष्टा तालपत्रिका ।
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