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चिकित्सितस्थान भाषाकासभेत।
(५८७ )
मूत्राघात में स्वेदादि ।
उक्त रोग पर मद्यपान । "कृच्छे बातघ्नतैलाक्तमधोनाभेः समीरजे। सौवर्चलाढ्यां मदिरा पिवेन्मुत्ररुजापहाम। सुस्निग्धैः स्वेदयेदगं पिंडसेकावगाहनैः।१।।. अर्थ-मूत्रकृछ की वेदना की शांति के
अर्थ-बातज. मूत्राघात में वातनाशक लिये बहुत सा कालानमक डालकर मद्य. बलातैलादि से अभ्यंग करके नाभि के | पान करना चाहिये । नीचे के भाग में अच्छीतरह से स्निग्ध पैत्तिक मूत्राघात में उपाय। पिंडस्वेद, परिषेक और अवगाहन से स्वेदन | पैत्ते युजीत शिशिरं सेकलेपाबगाहनम् ॥ करै।
___ अर्थ-पित्तज मूत्राघात में ठंडे सेक,लेप शूलनाशक तैल।
और अवगाहन करने चाहिये । दशमूलवलैरंडयवाभीरुपुनर्नवैः ।।
अन्य उपाय। कुलत्थकोलपत्तरवृश्चीवोपलभदकैः । २। पिवेदरीं गोक्षुरकं विदारी सकसेरुकाम् । तैलसर्विराहक्षवसाकथितकल्कितैः। तृणाख्यं पंचमूलं च पाक्यं समधुशर्करम् । संपंचलवणाः सिद्धाः पीताः शूलहरा परम् । अर्थ-सितावर, गोखरू, विदारी कंद,
अर्थ-दसमल, खरैटी, अरंड शतमूली | कसम और तण पंचमल दुतके काथ में सांठ, कुलथी, बेर, रक्तचंदन, लालसांठ,
शहत और शर्करा मिलाकर पान करने से और पाखानभेद इनके क्वाथ और कल्क के
पित्तज मूत्राघात नष्ट होजाता है। साथ तेल घी अथवा शूकर वा घुग्घू की
अन्य उपाय। चर्वी को पकाकर पांचों नमक मिलाकर
वृषकं पुसैर्वारु लट्वावीजानि कुंकुमम् । सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र की बेदना शांत
द्राक्षांभोभिः पिबेत्सर्वान्मूत्राघातानपोहति॥ होजाती है।
___ अर्थ-पाषाणभेद, खीरा के बीज,कसूम अन्य प्रयोग।
के बीज, और केसर इन सव द्रव्यों के द्रव्याण्येताति पानान्ने तथा पिंडोपनाहने।। करक को द्राक्षा के रसके साथ पीने से सहतलफलैंयुज्यात्साम्लानि नेहवति च ॥ सब प्रकारके मूत्राघात नष्ट होजाते हैं। ___ अर्थ-मूत्रकृच्छ् के निवारण के लिये
__ अन्प उपाय। ऊपर लिखे हुए दशमूलादि द्रव्यों की अन्न
| एवारुवीजयष्टयावदार्वीर्वा तंडुलांबुना। पान में योजना करै । तथा नारियल और
| तोयेन कल्कं द्राक्षायाः पिवेत्पर्युषितेन वा ॥ अखरोट आदि तैल फल को तक वा कांजी | अर्थ-ककडी के बीज, मुलहटी, और की खटाई से युक्त करके और बहुत सा | दारुहलदी इनके कल्कको चांवलोंके जलके स्नेह डालकर पिंडस्वेद और उपनाह स्वेद, साथ पान करै, अथवः दाखके कल्कको बादेना चाहिये । कोई २ तैल फलसे तिलों सी जलके साथ पानकरै तो पैतिक मत्राघात का ग्रहण करते हैं।
| शांत हो नाता है।
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