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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५८६) अष्टांगहृदय । श्यामात्रिवृद्विपक्कं वा पयो दद्याद्विरेचनम् ।। स्तस्मिन्नष्टे याति ना नाशमेव । असकृत्पित्तहरणं पायसं प्रतिभोजमम् ।। दोषैर्ग्रस्ते ग्रस्यते रोगसंधै अर्थ-अत्यग्नि से पीडित रोगी को प्यास युक्ते नुस्यान्नीरजो दीर्घजीवी ॥ लगने पर मोम मिलाहुआ दूध वा घी पान __ अर्थ-करोंदा, दही, सरसों, फाणित, करावै । अथवा बहुत घी डालकर दध में सूखामांस, अंकुरित अन्न, कच्चीमूली और मिला हुआ गेंहूं का चूर्ण, अथवा तेल के लकुच ये स्वभावविरुद्ध हैं । दूध खटाई, सिवाय अन्य स्नेहों से युक्त आनूप जीवों आनूप मांस और उरद ये संयोग विरुद्ध हैं का मांसरस, अथवा श्यामा और निसोथ के हरितमांस शूल पर न भुना हुआ ये संस्कार साथ पकाये हुए दूध का विरेचन देवे, | विरुद्ध है, आदि शब्द से मात्राविरुद्ध, अथवा पित्तको दूर करनेवाली खीरका बार | कालविरुद्ध और पात्रविरुद्ध अन्नों की बार आहार देवै । बिना विवेचना किये आहार विहारादि को चिकित्सा का संक्षेप वर्णन । सेवन करता हुआ जीवित रहता है वह सब यत्किंचिद्गुरु मेध्यं च श्लेष्मकारि च भोजनम् अग्नि के बल की सामर्थ्य है, इसलिये सब सर्व दत्याग्निहितं भुक्त्वा च स्वपनं दिवा॥ प्रकार से अग्निकी रक्षा करनी चाहिये, ___ अर्थ-वे संपूर्ण द्रव्य जो भारी, मेदस्कर | क्योंकि अग्नि के नष्ट होने से मनुष्य. शीघ्र और कफकारक हैं वे सब अत्यग्निमें हितहैं मरजाता है । अग्नि के दोषों से ग्रस्त होने और भोजन करके दिनमें सौना भी | पर मनुष्य अनेक प्रकार के रोगों से प्रस हित है। लिया जाता है । और यदि अग्नि स्वच्छ उक्त कथन का हेतु। हो तो मनुष्य निरोग रहता है और बहुत आहारमग्निः पचति दोषानाहारबर्जितः। | काल तक जीवित रहता है। धातून क्षीणेषु दोषेषु जीवितं धातुसंक्षये ॥ इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाषा- अर्थ अत्यग्नि प्रथम आहार को पचाती टीकान्वितायां चिकित्सितस्थाने ग्र. है, आहार न मिलने पर बातादि दोषों को हणीदोषचिकित्सितं नाम तदनंतर रसरक्तादि धातुओं को पचाती है, ___दशमोऽध्यायः॥१०॥ तथा दोषों के क्षीण - और धातुओं का संचय होने पर प्राणों का नाश करदेतीहै । विरुद्ध अन्न का वर्णन । एकादशोऽध्यायः। एतत्प्रकृत्यव विरुद्धमन्नं सयोगसंस्कारवशेन चेदम् । इत्याद्यविज्ञाय यथेष्टचेष्टा अथाऽतोमूत्राघातचिकित्सितं व्याख्यास्यामः श्चरति यत्साऽग्निवलस्य शक्तिः॥ अर्थ-अब हम यहांसे मूत्राघात चि. तस्मावाठी पालयेत्सर्बयत्वै. | कित्सित नामक अध्यायकी व्याख्या करेंगे । - For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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