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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०.८ चिकित्सितस्थान माषाकासभेत। (५५५) दन और नीलकमल इन सब औषधों को | घी रक्तातिस्राव में प्रशस्त है, अथवा धाय बकरी के दूध के साथ पान करावै और | के फूल, लोध, कुडा की छाल, इद्रजौ, बकरी के दूध के साथही शाली चांवलों | नीलकमल और नागकेसर के साथ सिद्ध का भात खानेको दे । यह पूर्ववत् गुण किया हुआ घी, अथवा जवाखार और करती है। अनार के रस के साथ सिद्ध किया हुआ __ अन्य प्रयोग। घृत उक्त रोग में गुणकारी है। ... यष्टया पद्मकांनंतापयस्याशीरमोरटम। अन्य घत । ससितामधु पातव्यं शीततोयेन तेन वा। शर्करांभोजकिंजल्कसहितं सह वा तिलैः। - अर्थ-मुलहटी,पदमाख,अनंतमूल, दुग्ध- अभ्यस्तं रक्तगुदजान् नवनति नियच्छति ॥ का, क्षारमोरटा, ( मधुरनवा ) इनके चूर्ण अर्थ-खांड और कमलकेसर इनके में मिश्री और शहत मिलाकर ठंडे जल वा । साथ अथवा तिलोंके साथ नवनीत (माखन) बकरी के दूधके साथ पान कराना चाहिये। का सेवन बहुत दिन तक करना रक्तार्श को अन्य प्रयोग। शमन करदेता है। रोधकवंगकुटजसमंगाशाल्मलीत्वचम् ॥ अन्य औषध । हिमकेसरयष्टयावं सेव्यं वा तंडुलांबुना । छागानि नवनीताज्यक्षीरमांसानि जांगलः । अर्थ-लोध,कुटकी,कूठ, कुडाकी छाल, अनम्लो वा कदम्लोबा सवास्तुकरसोरसः मजीठ, सेमर की छाल, इनको अथवा | रक्तशालिः सरोदनः षष्टिकस्तरुणी सुरा। चंदन, केसर, मुलहटी, और खस इनको तरुणश्च सुरामंडः शोणितस्यौषधं परम् ॥ तंडुल जल के साथ पीने से रक्तार्श नष्ट हो. अर्थ-बकरी का नवनीत, घी, दूध आता है। वा मांस ये रक्तार्श की परम औषध हैं, यवान्यादि चूर्ण । अथवा जंगली पशुओं का मांस रस खटाई "यवानीद्रयबाः पाठा बिल्व शुठीरसांजनम् ॥ रहित वा थोड़ी खटाई डालकर वथुए के चर्णश्च लेहिताशले प्रवृत्ते चाऽतिशोणिते | शाकके रससे युक्त सेवन करना भी रक्तार्श - अर्थ-अजवाइन, इंद्रजौ, पाठा, बेल- की परम औषध है । अथवा लाल शाली गिरी, सोंठ, रसौत इनका चूर्ण जलके साथ चांवलों का भात, दही की मलाई, सांठी फांकने से अर्श की वेदना और रक्त की चावल, तरुणी सुरा ( मीठेपन से युक्तअति प्रकृति दूर होती है । सुरा, ) तरुण सुरामण्ड, ये सव भी रक्त उक्त द्रव्य द्वारा सिद्ध घत। की परम औषध है । दुग्धिकाकंटकारीभ्यां सिद्धं सर्पिःप्रशस्यते अर्श पर पेयादि। अथवा धातकीरोध्रफुटजत्वक्फलोत्पलैः। पेयायूषरसायेषु पलांडुः केवलोऽपि वा। सकेसरैर्यवक्षारदाडिमस्वरसेन वा ।११७। स जयत्युल्बणं रक्तं मारतं च प्रयोजितः ॥ __ अर्थ-दूधिया और कटेरी डालकर औटाया ! अर्थ-पेया यूष और मांसरसादिके For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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