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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५५४] अष्टांगहृदय । अ०८ की छाल का क्वाथ अथवा चीता, सोंठ, | बकरी के दूध के साथ भोजन करे । यह दुरालमा, लालचंदन, दारुहलदी, वक,नीम | अवलेह रक्तातिसार, रक्तार्श, तथा प्रवल खस इनका काथ अथवा अनार की छाल ऊर्ध्वगामी वा अधोगामी रक्तपित्त को शीघ्र का क्वाथ पीना चाहिये । दूर कर देता है। अन्य औषध । अन्य अवलेह । फुटजत्वक्पलं ताये माक्षिकं घुणवल्लभाम् । कुटजत्वक्तुलां द्रोणे पचेदष्टांशशेषिताम्॥ पिबेत्तंडुलतोयेन कल्कितं वा मयूरकम् । | कल्कीकृत्य क्षिपेत्तत्र तायशैलं कटुत्रयम् । - अर्थ-कुडाकी छाल, इन्द्रजौ, रसौत, रोधद्वयं मोचरसं बलां दाडिमजां त्वचम् ॥ बिल्वकर्कटिकां मुस्तं समंगां धातकीफलम् मधु और अतीस इन सब द्रव्यों का कल्क पलोन्मितं दशपलं फुटजस्यैव च त्वचः ॥ अथवा औंगा का कल्क तंडुल जलके साथ त्रिंशत्पलानि गुडतो घृतात्पूते च विंशतिः। पान करना चाहिये । तत्पर्क लेहतां यातं धान्ये पक्षस्थितं लिहन् । उक्तरोग पर अवलेह । सर्वाशग्रहणीदोषश्वासकासान्नियच्छति । तुलां दिव्यांभसि पचेदाद्रायाः कुटजत्वचः॥ अर्थ-एक तुला कुडा की छाल को नीरसायां त्वचि काथे दद्यात्सूक्ष्मरजीकृतान् | एक द्रोण जल में पकाव, अष्टमांश शेष समगाफलिनीमोचरसान्मुष्टयंशकान्समान्॥ | रहने पर उतार कर छान ले फिर इसमें तैश्च शक्रयवान्पूते ततो दर्वीप्रलेपनम् । पक्त्वावलेह लीदवा चतं यथाग्निवलं पिबेत् | रसौत, त्रिकुटा, दोनों लोध, मोचरस, ख. पेयां मंडं पयश्छागं गव्यं वा छागदुग्धभुक्। रैटी, अनार की छाल, बेलगिरी, नागर लेहोऽयं शमयत्याशु रक्तातीसारपायुजान् मोथा, मजीठ, धायके फल ये सब एक एक बलवद्रक्तपित्तं च नवदृर्ध्वमधोऽपिवा।। पल, कुडा की छाल १० पल, इन सब ___ अर्थ-अंतरीक्ष जल में हरी कुडा की द्रव्यों को पीसकर डाल दे और पकावे, छाल एक तुला इतनी देर तक पकावे जव | पकजाने पर उतार कर छानले, फिर इस तक छाल नीरस होजाय (काथका आठवां में ३० पल गुड और बीस पल घी मिला भाग रहने पर प्रायः छाल नीरस होजाती देवै । फिर इसको पकावै जव गाढा होजाय है )। फिर इस काढे में मजीठ, प्रियंगु तव इसे एक पात्र में भरकर अन्न के ढेर और मोचरस चार चार ताले लेकर पीस- या है। फिर पन्द्रह दिन पीछे इसका कर डालदे और इन्द्रजो इन सव के समान सेवन करने से सब प्रकार के अर्श, ग्रहणी डालदे, जब पकते पकते इतना गाढा हो दोष, श्वास और खांसी दूर होजाते हैं। जाय कि कलछी से लगने लगे तब उतार अन्य उपाय। ले । इस अवलेह को अग्नि के बल के | रोधं तिलान्मोचरसं समंगां चदनोत्पलम् ॥ अनुसार सेवन करना चाहिये । इस पर पायायत्वाऽजदुग्धेन शालीस्तेनैव भोजयेत् पेया, मंड, बकरी वा गौका दुग्ध पीवे वा । अर्थ-लोध, तिल, मोचरस, मजीठ,चं. For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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