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म०८
चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत ।
(५५३ )
वातकफानुबंध के लक्षण ।
अर्थ-जव तक दोषसे कलुषता का रक्त सकृच्छयावं खरं रूक्षमधो निर्याति नानिलः स्राव होता हो, तब तक रक्त को वंद न कटयरुगुरशूलं च हेतुर्यदि च रूक्षणम्। करना चाहिये। तत्रानुबंधो बातस्य श्लेष्मणो यदि-
गोवा बिट श्लथा ॥ ९६ ॥ दोषाणांपाचनार्थ च वह्निसंधुक्षणाय च । श्वेता पीता गुरुः स्निग्धा सिापेच्छा
संग्रहाय च रक्तस्य परं तिक्तैरुपाचरेत् ।
स्तिमितो गुदः। हेतुस्निग्धगुरुर्विद्याद्यथास्वं चानलक्षणात्॥ |
____अर्थ-जव रक्तस्राव की कलुषता दूर ___ अर्थ-जिस रक्तार्श में पुरीष श्याववर्ण,
होजाय तव आम दोषके पचाने के लिये अकर्कश और रूक्ष हो, अधोवायु नीचे को ग्नि को प्रदीप्त करने के लिये और शुद्धरक्त प्रवृत्त हो । कमर, ऊरु और गुदा में शूल को रोकने के लिये तिक्तरसयुक्त औषधद्वारा हो और इन सबकी उत्पत्ति का हेतु कक्ष
चिकित्सा करनी चाहिये । सेवन हो तो वातका अनुबंध समझना चा
रक्तस्रावमें चिकित्सा।
| यत्तु प्रक्षीणदोषस्य रक्तं वातोल्बणस्य वा । हिये । और यदि मलमें शिथिलता, तथा
स्नेहस्तच्छोधयेद्युक्तैः पानाभ्यंजनबस्तिषु ॥ मलका वर्ण सफेद, पीला, भारी, चिकना,
अर्थ-जिस रोगीके दोष क्षीण होगये हों, पिच्छिलतायुक्त हो तथा गुदा में स्तिमिता
अथवा वाताधिक्य वाले रोगीका जो रक्तस्राव हो और इन विकारों की उत्पत्तिका हेतु
होता है उसे घृतपान, घृताभ्यंग और घृतभारी और चिकने पदार्थों का सेवन हो तो
वस्तिद्वारा शोधन करना चाहिये । कफानुबंध समझना चाहिये । तथा सिरा
पित्ताधिक्य रक्त का स्तंभन । व्यधविधि में कहे हुए रक्त के लक्षणों से
यत्तु पित्तोल्बणं रक्तं धर्म कालेप्रवर्तते । रक्त के श्यावारुणत्व होने से वायुका अनुबंध स्तंभनीयं तदेकांतान चेद्वातकफानुगम्
और स्निग्धादि लक्षणों से कफका अनुबंध अर्थ -जो पित्ताधिक्य रक्त गरमी के का. समझना चाहिये ।
रण स्राव होता है, उसको अवश्य ही रोक . दूषितरक्त में लंघनादि। देना चाहिये क्योंकि न रोकने से भारी उ. दष्टेऽस्र शोधनं कार्य लंघनं च यथावलम् । पद्रव की आशंका होती है, किंतु ग्रीष्मकाल · अर्थ-वातादि दोषोंसे दाषित रक्तमें रोगी में यदि वातकफानुवंध से रक्तका स्राव होता को वलके अनुसार शोधन और लंघनसे शुद्ध हो तो रक्तको न रोककर लंघनादि शोधन करना चाहिये अर्थात् दोषोंकी अधिकता हो । द्वाराही चिकित्सा करना चाहिये । ने पर विरेचनादि द्वारा शोधन और अल्पता
कफानुगत रक्तमें कर्तव्य ।
सकफेऽने पिबेत्पाक्यं शुंठी कुटजबल्कलम होनेपर लंघन कराना चाहिये ।
किराततिक्तकं शुंठींधन्वयासं कुचंदनम् दोपोंकी कलुषतामें रक्तस्राव । दारूत्वबिसेव्यानित्वचं वा दाडिमोद्भवाम यावश्च दोषैः कालुभ्यं नतेस्तावदुपेक्षणम् । अर्थ-कफानुबंधी रक्तस्रावमें सौंठ, कुडा
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