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(५३४)
अष्टांगहृदय ।
सब मदात्यपों में रुच्यपानक। दूधही पथ्य होता है, जैसे ग्रीष्मसे जले हुए " त्वङ्नागपुष्पमगधामरीचाजाजिधान्यकैः । वृक्ष के लिये वर्षा हितकारी होती है । परूषकमधूकैलासुराहवैश्च सितान्वितैः।। मद्यक्षीण में दूधका कारण । सकपित्थरस हृद्यं पानकं शाशबोधितम् ॥ | मद्यक्षीणस्य हि क्षीण क्षीरमाश्वेव पुष्यति। मदात्ययेषु सर्वेषु पेयं रुच्याग्निपिनम् । | ओजस्वल्य गणेः सर्वपिरीमदतः। अर्थ-दालचीनी. नागकेसर, पीपल,
___ अर्थ-दूध ओज धातुके गुण के समान कालीमिरच, काला जीरा, धनियां,फालसा,
और मद्यगुण के विपरीत गुणवाला होता है मुलहटी, इलायची, देवदारू, इन सब द्र
| इस लिये मद्यसे क्षीण संगी की क्षीण हुई ओज व्यों को घोट कर छानले फिर इसमें खांड धातुकोशीघही पुष्ट करदेता है। अतएव मद्यसे
और कैथ का रस मिलाकर कपूर से सु- क्षीण मनुष्य को दूध ही श्रेष्ठ पथ्य है । गंधित करै । यह पानक सब प्रकार के अल्पमय विधि । मदात्यय में हितकारी होता है इसके सेवन पयसा विजिते रोगे वले जाते निवर्तयेत्। से अन्न में रुचि और जठराग्नि बढती है। क्षीरप्रयोगं मद्य च क्रमेणाल्पाल्पमाचरेत् । - मदात्यय में हर्षणी क्रिया। न विट्झयध्वंसकोत्थैः स्पृशेनौपद्रवैर्यथा ॥ नाविक्षोभ्य मनो मद्यं शरीरमविहन्य वा ॥ अर्थ-जब दूध से मदात्यय रोग जाता कुर्यान्मदात्ययं तस्मादिष्यते हर्षणी क्रिया। रहै और शरीर में बल उत्पन्न होजाय तब
अर्थ-मद्य मनको क्षुभित और शरीर दूध पीना छोडदे और थोडा थोडा मद्य को कष्ट पहुंचाये बिना कुछभी नहीं कर पीना आरंभ करै, जिससे पुरीषक्षयसंबंधी सकता है इसलिये मदात्यय में प्रसन्नता कायरोग और शिरोरोगादि तथा ध्वंसकोद्भव करनेवाली क्रिया करना अभीष्ट है । श्लेष्मनिष्ठीवनादि उपद्रव उत्पन्न न होने . मदात्यय में दूध ।
पावै संशुद्धिशमनायेषु मददोषाकृतेष्वपि॥४८॥
विक्षयादि में कर्तव्य । न घेच्छाम्येत्कफे क्षीणे जाते दौर्बल्यलाघवे।
तयोस्तु स्यादघृतं क्षीरं बस्तयो वृहणाः तस्य मद्यविदग्धस्य वातपित्ताधिकस्य च ॥
शिवाः। प्रीष्मोपतप्तस्य तरोर्यथा वर्ष तथा पयः।
अभ्यंगोद्वर्तनम्नानमन्नपानं च पातजित् ॥ .. - अर्थ-संशोधन और संशमनादि क्रिया
___ अर्थ-यदि पुरीषक्षयजनित और ध्वंस. ओं के करने पर भी यदि मदके दोषकी
कजनित उपद्रव खडे होजाय तो घृतपान, शांति न हो तो मदके द्वारा विदग्ध उस
दुग्धपान, वृंहण, वस्तिप्रयोग, अभ्यंग, मनुष्य की सौम्यधातु कफके क्षीण होनेसे
उद्वर्तन, स्नान और वातनाशक अन्नपान और अल्पकृशता होनेसे वातपित्त की अ- हित होते हैं। धिकता होजाती है । इसलिये उस वात | मद्यसंयोग में कारण । पित्ताधिक्य वाले मद्यविदग्ध रोगी के लिये । युक्तमद्यस्य मयोत्थो न म्याधिरुपजायते ।
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