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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५२४] - अष्टांगहृदय । अ०७ सात्म्यानपानभैषज्यस्तृष्णांतस्थ जयेत्पुरः। उक्तविधि में हेतु ।। तस्यां जितायामन्योऽपि शक्यो पित्तमारुतपर्यंतःप्रायग हि मदात्ययः । .. व्याधिश्चिकित्सितुम् ,, ॥ ८३ ॥ अर्थ:-किसी पहिले रोगसे क्षीण तृषार्त | अर्थ-मदात्यय रोगमें प्रथम कफकी अधि. व्यक्ति को यदि जल न मिले तो या तो वह । सनी मानव कता होतीहै, फिर कुछ काल पाकर प्रायः शीध्र मरजाता है अथवा उसके कोई बहुत | वातपित्त की अधिकता होजाती है इसलिये काल तक रहने वाला रोग होजाता है । | प्रथम कमानुपूर्वी चिकित्सा करना चाहिये इसलिये बहुत शीघता पूर्वक अन्यरोगों की ( कफा नुपूर्वी चिकित्सा की व्याख्या ज्वरके अपेक्षा सात्म्य अन्नपान और औषधों द्वारा प्रकरण में देखो ) सबसे पहिले तृषारोग को जीतने का यत्न मद्यजव्याधिमें मद्यसे शांति । हीनमिथ्यातिपीतेन यो ब्याधिरुपजायते २ करे । इसके जीतने पर अन्यरोगों की समपीतेन तेनैव स मद्येनोपशाम्यति । चिकित्सा भी सहज में होसकती है। .. मद्यस्य बिषसादृश्यात् इतिश्री अष्टांगहृदयसहितायां भाषाटी- । अर्थ-हीनमात्रा, मिथ्यामात्रा वा अतिकायां चिकित्सितस्थाने छर्दि- | मात्रा में मद्यपानसे जो व्याधियां होती हैं वे चिकित्सितनाम षष्टो उसी मद्यके सम्यक् पानसे शांत होजाती हैं ऽध्यायः॥६॥ जैसे मार, माधव वा गौडादि मद्यपान से जो व्याधियां होती है वे माकादि मय | पान सेही शांत होती हैं । इसका कारण यही सप्तमोऽध्यायः । है कि मद्यविषके सदृश होता है । जैसे विष में तीक्ष्णादि दस गुण होते है वैसेही मद्यमें भी अथाऽतो मदात्ययाचकित्सितं दसगुण होतेहैं । विष और मद्यमें अंतर केवल व्याख्यास्थामः। अर्थ-अब हम यहांसे मदात्ययचिकित्सि इतना ही है कि विमें जो गुणहैं, वे तीव्रभाव में होतेहैं और मद्यमें वेही गुण मृदुभावमें होतेहैं त नामक अध्याय की व्याख्या करेंगे । ___मदात्यय में चिकित्साविधि ।। मद्यसे मद्यकी शांति में शंका । . "यं दोषमधिकं पश्येत्तस्यादौ प्रतिकारयेत् विषं तूत्कर्षवृत्तिभिः ॥३॥ . ककस्थानानुपूळवा तुल्यदोषे मदात्यये । तीक्ष्णादिभिगुणैर्योगाद्विपांतरमपेक्षते ।। ___ अर्थ-मात्यय रोग जिस वातादि दोष अर्थ-( शंका ) जो विष और मद्य की अधिकता वा समता वां विषमता देखी सदृश हैं तो जैसे विपकी शांति अन्य वि. जाय पहिले उसी रोगका प्रतीकार करना | पसे होती है बैसेही मद्यकी शांति भी अन्य चाहिये ॥ यदि दोषप्रकोप की समानता हो । मद्य से होनी चाहिये, ( उत्तर ) विषमें दश तो कफस्थानानुपूर्वी चिकित्सा करनी चाहिये। गण नडे उत्कट भाव में रहते हैं, इसलिये - - For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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